उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था को पहचानने में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान निभा रहा है मुख्य किरदार



  • प्रसव पूर्व जांच को लेकर जिले में बढ़ी जागरूकता
  • जिले में मातृत्व स्वास्थ्य में आया गुणात्मक सुधार

कानपुर नगर - मातृ मृत्यु दर में कमी लाने और गर्भवती को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से जिला महिला अस्पताल सहित स्वास्थ्य इकाइयों पर बुधवार को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (पीएमएसएसए) दिवस मनाया गया। इसके तहत गर्भवती की प्रसव पूर्व जांच, उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था (हाई रिस्क प्रेगनेंसी) की पहचान, पोषण, परिवार नियोजन तथा प्रसव स्थान के चयन के बारे में काउंसलिंग की गयी। महिलाओं के निरीक्षण के साथ ही उन्हें सुरक्षित मातृत्व की पुस्तिका भेट की गई व स्वस्थ्य केंद्र पर ही आई सभी गर्भवती महिलाओं को स्वल्पाहार भी दिया गया।

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान भारत सरकार की एक पहल है, जिसके तहत हर महीने की 9 तारीख को गर्भवती महिलाओं की पूर्ण जाँच की जाती है। जिसके द्वारा ये पता लगाया जाता है कि कहीं कोई गर्भवती महिला उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था में तो नहीं। इस अभियान के अंतर्गत यदि गर्भवती महिलाओं को उनकी प्रसव पूर्व की अवधि के दौरान गुणवत्तायुक्त देखभाल प्रदान की जाए तथा उच्च जोख़िम वाले कारक जैसे कि गंभीर एनिमिया, गर्भवस्था प्रेरित उच्च रक्त चाप इत्यादी का समय पर पता लगाकर अच्छी तरह से प्रबंधित किया जाए, तो मातृत्व मृत्यु में कमी लायी जा सकती है। यह कहना है अपर मुख्य चिकित्साधिकारी (आरसीएच) डॉ एसके सिंह का।

डॉ सिंह ने बताया कि मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को सुदृढ़ करने को लेकर  कई योजनाएँ व कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं । इससे  जिले की महिलाओं में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता आई है । इसका सुखद परिणाम हाल ही में जारी  नेशनल  फेमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस) – 5 (वर्ष 2020-21) की रिपोर्ट में देखने को मिला  है। उन्होंने बताया कि जच्चा-बच्चा के बेहतर स्वास्थ्य व सुरक्षित प्रसव के लिए प्रसव पूर्व जांच व देखभाल (एएनसी) बेहद जरूरी है। गर्भावस्था के दौरान कम से कम चार प्रसव पूर्व जांच आवश्यक रूप से करानी चाहिए। एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार जिले में गर्भावस्था की पहली तिमाही में 78.4 फीसदी गर्भवती ने प्रसव पूर्व जांच कराई, जबकि वर्ष 2015-16 में जारी एनएफएचएस-4 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा 62.8 प्रतिशत था। इसी तरह एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार 69.9  फीसदी गर्भवती ने कम से कम चार बार प्रसव पूर्व जांच कराई, जबकि वर्ष 2015-16 में यह आंकड़ा 36.0 प्रतिशत था । इसके साथ ही 95.0 फीसद  महिलाएं प्रसव के दौरान नवजात टिटनेस से सुरक्षित रहीं जबकि एनएफ़एचएस-4 में यह आंकड़ा 90.9 प्रतिशत था।

जिला मातृ स्वास्थ्य परामर्शदाता हरिशंकर ने बताया कि जनपद मेंबाकी स्वास्थ्य केन्द्रों के साथ ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र , सरसौल और शिवराजपुर में भी प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान मनाया गया, सरसौल में 53 और शिवराजपुर में 68 गर्भवती महिलाओं का परीक्षण किया गया, जिसमें से 12 गर्भवती महिलायेँ उच्च जोखिम की अवस्था में निकली। उन्होंने बताया कि जो महिलाएं एचआरपी (हाइ रिस्क प्रेग्नेंसी) चिन्हित हुई है, अब उनके प्रसव होने तक उनको विशेष निरीक्षण में रखा जाएगा, तथा वो संस्थागत प्रसव ही कराये, इसके लिए उनके परिवार को समझाया जाएगा।

महिलाएं स्वास्थ्य को लेकर हुईं सजग : मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ नेपाल सिंह का कहना है कि आंकड़ों के अनुसार बीते चार से पाँच सालों में जिले में महिलाएँ अपने स्वास्थ्य को लेकर काफी सजग हुई हैं। उन्होने कहा कि स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयासरत है कि समुदाय के अंतिम व्यक्ति तक स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ मिल सके। उन्होने भविष्य में भी इसी तरह के सकारात्मक परिणाम की कामना की है।

उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था है क्या?

उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था वह अवस्था है जिसमे माँ या उसके भ्रूण के स्वास्थ्य या जीवन को खतरा होता है। किसी भी गर्भावस्था में जहाँ जटिलताओं की संभावना अधिक होती है उस गर्भावस्था को हाई रिस्क प्रेगनेंसी या उच्च जोखिम वाली गर्भवस्था में रखा जाता है। इस तरह की गर्भावस्था को प्रशिक्षित डॉक्टर्स की विशिष्ट देखभाल की आवश्यकता होती है।