- ‘‘इन मुद्दों पर भी हो बात, तो बदल जाएंगे हालात’’
- सही उम्र में शादी, गर्भधारण व गर्भसमापन में निर्णय का अधिकार, यौन संक्रमण से बचाव चुनौती
गोरखपुर - यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों को समर्पित अन्तर्राष्ट्रीय महिला स्वास्थ्य दिवस प्रत्येक वर्ष 28 मई को मनाया जाता है । इसका उद्देश्य उन सभी मुद्दों पर बात करना और समाज में अनुकूल वातावरण तैयार करना है जो महिलाओं के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों से संबंधित हैं । मसलन सही उम्र में शादी, पार्टनर चुनने की आजादी, गर्भधारण में महिला की सहमति, गर्भसमापन में निर्णय लेने का स्वतंत्र सामाजिक अधिकार, परिवार नियोजन साधनों तक पहुंच और यौन संक्रमण से होने वाली बीमारियों से बचाव के सभी उपायों तक ‘‘आधी आबादी’’ की पहुंच अभी भी एक सामाजिक चुनौती बनी हुई है ।
राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएचएफएस) पांच (2019-21) के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में सिर्फ 64.6 फीसदी ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें यह पता है कि उनके पार्टनर अगर कंडोम का निरंतर उपयोग करते हैं तो वह एचआईवी संक्रमण और एड्स से बच सकती हैं । जागरूकता के अभाव और परिवार नियोजन के साधनों के इस्तेमाल में पुरूष की अरूचि के कारण महिलाएं असुरक्षित संबंध के जरिये आज भी सेक्सुअल ट्रांसमिटेड डिजीज (एसटीआई) का शिकार हो रही हैं । इसी सर्वे के अनुसार प्रदेश में 72.6 फीसदी 15 से 24 आयु वर्ग की महिलाएं माहवारी के दौरान स्वच्छता के लिए किसी सुरक्षित साधन का इस्तेमाल करती हैं।
लेखिका और कवयित्री सरिता सिंह का मानना है कि माहवारी के दौरान स्वच्छता व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर सैनेट्री पैड बॉक्स लगाए जाने चाहिए। साथ ही राशन की दुकानों से न्यूनतम दर पर यह पैड उपलब्ध कराए जाने चाहिए। इससे महिलाओं का विभिन्न बीमारियों से बचाव होगा । वह कहती हैं कि कम उम्र में शादी लड़कियों को यौन हिंसा का भी शिकार बनाती है।एनएचएफएस पांच के आंकड़ों के अनुसार भी 18 से 29 आयु वर्ग की 0.7 फीसदी महिलाएं अठारह वर्ष की उम्र तक यौनिक हिंसा झेल चुकी होती हैं।
समय से स्क्रीनिंग आवश्यक : पिपराईच सीएचसी की प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ एमडी बर्मन का कहना है कि सर्विक्स कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में शीघ्र स्क्रीनिंग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है । इसके जरिये इन बीमारियों को गंभीर अवस्था में पहुंचने से रोका जा सकता है। इन दोनों कैंसर की स्क्रीनिंग के मामले में महिलाएं काफी पीछे हैं। डॉ बर्मन के इस बात को एनएचएफएस पांच के आंकड़े भी पुष्ट करते हैं, जिनके मुताबिक प्रदेश में 0.4 फीसदी महिलाओं ने ब्रेस्ट कैंसर और 1.5 फीसदी महिलाओं ने सर्विक्स कैंसर की जांच कराई है। वह कहती हैं कि इस स्थिति को बदलने के लिए सरकारी प्रयास चल रहे हैं, लेकिन सामुदायिक सहयोग की अहम भूमिका है । महिलाएं जब तक हिचक तोड़ कर जांच के लिए आगे नहीं आएंगी, स्थिति नहीं सुधरेगी।
कम उम्र में शादी को कर रहे हैं हतोत्साहित : अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी रिप्रोडक्टिव चाइल्ड हेल्थ (आरसीएच) डॉ एके चौधरी का कहना है कि समुदाय स्तर पर कम उम्र में शादी को हतोत्साहित करने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रयासरत हैं। साथ ही यह संदेश दिया जाता है कि शादी के कम से कम दो वर्ष बाद ही गर्भधारण करना है। इसके पीछे उद्देश्य है कि गर्भधारण सही उम्र में ही हो और तब हो जब दंपति के बीच समझदारी बन जाए। सभी सरकारी अस्पतालों के साथ साथ अग्रिमपंक्ति कार्यकर्ता के माध्यम से भी परिवार नियोजन की सेवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।