- ‘सांस’ कार्यक्रम - नवजात शिशुओं व बच्चों को निमोनिया से दिलाएगा छुटकारा
- जन्म से लेकर पाँच वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर में कमी लाना सरकार का लक्ष्य
- समय से लगवाएँ शिशु को पीसीवी का टीका, छह माह तक कराएं सिर्फ स्तनपान
कानपुर - मातृ व शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न योजनायें व कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं। इसी क्रम में जन्म से लेकर पाँच वर्ष तक के बच्चों को निमोनिया से बचाव एवं उससे होने वाली मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से ‘सांस’ यानि ‘सोशल अवेयरनेस एंड एक्शन टू न्यूट्रलाइज़ निमोनिया सक्सेसफुली’ कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है। इस संबंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय सभागार में प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत हुई है।
सीएमओ डॉ आलोक रंजन की अध्यक्षता में संचालित प्रशिक्षण में शहरी व ग्रामीण स्तरीय स्वास्थ्य केन्द्रों के अधिकारियों सहित सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी , आशा संगिनी और एएनएम को सांस कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। सीएमओ ने कहा कि एस.आर.एस. 2020 के अनुसार देश में पाँच वर्ष तक के बच्चों की मृत्यु दर 32 प्रति 1000 जीवित जन्म है, जबकि प्रदेश में शिशु मृत्यु दर 43 प्रति 1000 जीवित जन्म है। नेशनल हेल्थ पॉलिसी वर्ष 2017 के लक्ष्य के अनुसार पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर को वर्ष 2025 तक 23 प्रति 1000 जीवित जन्म तक कम करना है। इसकी समय से पहचान एवं उचित इलाज से ही शिशु मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
एसीएमओ व कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ रमित रस्तोगी ने बताया कि पाँच वर्ष तक के बच्चों में मृत्यु के कारणों में से निमोनिया एक प्रमुख कारण है। हजारों बच्चे प्रतिवर्ष निमोनिया से संक्रमित हो जाते हैं। पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में निमोनिया के कारण होने वाली मृत्यु अन्य संक्रामक रोगों से होने वाली मृत्यु की तुलना में काफी अधिक है।
मास्टर ट्रेनर डॉ रमेश कुमार ने बताया कि सांस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य समुदाय में जागरूकता पैदा करना, निमोनिया की पहचान करने में सक्षम करने के लिए देखभालकर्ता को जागरूक करना, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के माध्यम से निमोनिया के मिथकों व धारणाओं के बारे में व्यवहार परिवर्तन करना है। निमोनिया फेफड़ों में होने वाला संक्रमण है। निमोनिया से होने वाली लगभग आधी मौतें वायु प्रदूषण से जुड़ी हैं, इसमें इंडोर वायु प्रदूषण भी मुख्य कारक है।उन्होंने कहा कि सही समय पर निमोनिया की पहचान कर इसका उपचार कराना सबसे ज्यादा जरूरी है। इसके लिए चिकित्सकों, एएनएम व कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर (सीएचओ) को प्रशिक्षित किया जा रहा है।
25 दिन चलेगा प्रशिक्षण, अब स्वास्थ्यकर्मियों को करेंगे प्रशिक्षित : जिला सामुदायिक प्रक्रिया प्रबंधक योगेंद्र पाल ने बताया कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम सोमलवार से छह अगस्त के बीच कुल 25 दिन चलेगा, जिसमें कुल 100 से अधिक चिकित्सकों व स्टाफ नर्स को मास्टर ट्रेनर डॉ जय प्रकाश व डॉ रमेश कुमार के द्वारा प्रशिक्षित किया जायेगा। प्रशिक्षण में निमोनिया के कारण, लक्षण, पहचान, उपचार व प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी जायेगी। प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके सभी चिकित्सक व स्टाफ नर्स अब आशा कार्यकर्ता को प्रशिक्षित करेंगे।
समय पर लगवाएँ पीसीवी टीका – डॉ रस्तोगी ने बताया कि इसके साथ ही छह सप्ताह के शिशुओं को पीसीवी की पहली डोज़, 14वें सप्ताह पर दूसरी डोज़ और नौ माह पूर्ण होने पर तीसरी डोज़ सभी सरकारी स्वास्थ्य इकाइयों में लगाई जा रही है। संस्थागत प्रसव के दौरान शिशु के जन्म पर माँ का पहला गाढ़ा पीला दूध (कोलेस्ट्रम) पिलाने के लिए प्रेरित करें। जन्म से लेकर छह माह तक सिर्फ स्तनपान कराने के फायदे के बारे में माँ को जानकारी दें। साथ ही नौ से 12 माह पर, 16 से 24 माह पर और दो से पाँच वर्ष के बच्चों को छह-छह माह के अंतराल पर विटामिन ए की खुराक पिलाएँ। इसके अलावा जन्म से लेकर पाँच वर्ष तक के बच्चों को उम्र के अनुसार सभी टीके जरूर लगवाएँ।
निमोनिया के लक्षण :
- खांसी और जुकाम का बढ़ना
- तेजी से सांस लेना
- सांस लेते समय पसली चलना या छाती का नीचे धंसना
- कंपकंपी व तेज बुखार आना
गंभीर लक्षण :
- कुछ भी खा – पी न पाना
- झटके आना
- सुस्ती या अधिक नींद
निमोनिया से बचाव :
- सर्दियों के दौरान बच्चों को गर्म व सामान्य तापमान में रखें
- छह माह तक सिर्फ स्तनपान कराएं
- संतुलित व स्वस्थ आहार
- अच्छे से हाथ धोएँ