किडनी के 46 मरीजों को डायलिसिस सेण्‍टर में मिल रहा है नया जीवन



  • छ: मशीनों  के जरिए हो रहा मरीजों का इलाज
  • किडनी के रोगियों के लिए चार और मशीन आईं

संतकबीरनगर - जिला अस्‍पताल में डायलिसिस की सुविधा उपलब्‍ध होने से किडनी के 46 मरीजों को नया जीवन मिल रहा है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर चल रही डायलिसिस यूनिट में छ: मशीन हैं, जिनके जरिए डायलिसिस की सुविधा रोगियों को मिलती है। वर्तमान में चार  मशीन और आ गयी हैं। इन्‍हें स्‍थापित करके आगे संचालित किया जा सकेगा, जिससे मशीन की संख्‍या कुल 10 हो जाएगी और प्रतिदिन 30 मरीजों की डायलिसिस हो सकेगी।

जिला अस्‍पताल के मुख्‍य चिकित्‍सा अधीक्षक डॉ. ओ. पी. चतुर्वेदी ने बताया कि पीपीपी मॉडल पर अस्‍पताल में जिले में 15 अप्रैल 2022 से डायलिसिस की सुविधा का शुभारंभ किया गया। पहले महीने में कुल 176 डायलिसिस सत्र का आयोजन किया गया। वर्तमान में जिन मरीजों का इलाज चल रहा है उनमें 41 किडनी के सामान्‍य तथा 5 गंभीर रोगी हैं। यहां पर मशीन की संख्‍या और बढ़ाई जा रही है, ताकि ज्यादा से ज्यादा मरीजों को राहत मिल सके।

55 वर्षीया निर्मला देवी मूल रुप से महराजगंज की निवासी हैं। वर्तमान में वह मड़या अचकवापुर मुहल्‍ले में रहती हैं। उन्‍हें मधुमेह है, और विगत 28 अप्रैल को अचानक बुखार हुआ और शरीर में जकड़न हुई। जांच के दौरान किडनी में समस्‍या बताई गयी। इसके बाद वह लखनऊ के मेदान्‍ता हॉस्पिटल में गयीं जहां पर चिकित्‍सक ने बताया कि किडनी खराब हो गयी है, ट्रांसप्‍लांट कराना पड़ेगा। डोनर न मिलने के कारण उन्‍होंने ट्रांसप्‍लांट में अक्षमता बताई। चिकित्‍सक ने ट्रांसप्‍लांट न होने तक डायलिसिस के लिए कहा। इसके बाद वह डायलिसिस सेंटर में आई और पंजीकरण कराया तथा निःशुल्‍क सुविधा ले रही हैं। उनकी सप्‍ताह में दो बार डायलिसिस होती है। वह बताती हैं कि अगर यहां पर सुविधा नहीं रहती तो उन्‍हें लखनऊ या अन्‍य स्‍थानों पर जाना पड़ता। वहां पर खर्च अतिरिक्‍त देना पड़ता और रहने के अलग पैसे लगते। यह सुविधा होने से उन्‍हें काफी राहत है।

क्‍या है डायलिसिस : सेंटर के नोडल अधिकारी डॉ एपी मिश्रा बताते हैं कि जब दोनों किडनी कार्य नहीं कर रही हों, उस स्थिति में किडनी का कार्य कृत्रिम विधि से करने की पद्धति को डायलिसिस कहते हैं। यह एक प्रक्रिया है जो किडनी की खराबी के कारण शरीर में एकत्रित अपशिष्ट उत्पादों और अतिरिक्त पानी को कृत्रिम रूप से बाहर निकालता है। संपूर्ण किडनी फेल्योर या एण्ड स्टेज किडनी डिजीज या एक्यूट किडनी इंज्यूरी के मरीजों के लिए यह जीवन रक्षक तकनीक है।

तीन शिफ्ट में होता है इलाज : सेंटर में डायलिसिस की तीन शिफ्ट सुबह 7 बजे से लेकर रात 10 बजे तक चलती है। हर शिफ्ट 4 घण्‍टे की होती है। बीच में कुछ समय मशीन को विसंक्रमित करने में लगता है।

हेपेटाइसिस सी के लिए है अलग मशीन : केन्‍द्र में हेपेटाइसिस सी के मरीजों के लिए अलग मशीन है। इस मशीन में गंभीर रोगों से जूझ रहे मरीजों की डायलिसिस होती है। यह अलग तरीके से काम करती हैं तथा इसके लिए अलग कक्ष ही बनाया गया है, ताकि दूसरे मरीज संक्रमित न हों।

मरीज ऐसे  कराएं पंजीकरण : किसी भी किडनी रोगी को पंजीकरण कराने के लिए यह जरुरी है कि उसके पास 3 महीने के अन्‍दर का किसी किडनी रोग विशेषज्ञ के द्वारा डायलिसिस के सलाह का पर्चा हो। आधार कार्ड तथा पासपोर्ट साइज की चार फोटो हो तथा आधारकार्ड उसके मोबाइल फोन से लिंक हो। इन सारी चीजों को लेकर वह जिला अस्‍पताल से 1 रुपए की पर्ची कटवाए तथा इन चीजों को लेकर केन्‍द्र के प्रभारी फिजिशियन डॉ ए पी मिश्रा के पास जाए। वहां पर रोगी के निरीक्षण के बाद सेंटर पर भेज देंगे। सेंटर पर अगर स्‍लॉट खाली होगा तो उस रोगी को एलाट हो जाएगा।