- 15 साल से कम आयु के किसी बच्चे को हो लकवा तो तुरन्त दें सूचना
- चिकित्सा अधिकारी के नेतृत्व में टीम जाकर लेती हैं बच्चे का सैम्पल
संतकबीरनगर - यूं तो जनपद वर्ष 2006 में ही पोलियोमुक्त हो गया, लेकिन स्वास्थ्य विभाग पोलियो जैसी घातक बीमारी पर आज भी नजर रखे हुए है। 15 साल से कम आयु के किसी भी बच्चे को अगर लकवे की शिकायत होती है तो विभागीय टीम तुरन्त ही सक्रिय हो जाती है और उस बच्चे की तुरन्त ही जांच कराती है।15 साल से कम आयु का कोई भी बच्चा अगर लकवे का शिकार होता है तो इसकी सूचना तुरन्त ही आशा कार्यकर्ता के जरिए या खुद ही नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र को दें जिससे उसकी जांच कराई जा सके।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ अनिरुद्ध कुमार सिंह ने बताया कि 15 साल से कम आयु के बच्चे जिनके शरीर का कोई हिस्सा अचानक काम करना बन्द कर देता है उसकी पूरी जांच चिकित्सा अधिकारी की टीम से कराई जाती है। उस बच्चे की केस हिस्ट्री ली जाती है तथा टीकाकरण की डिटेल के साथ ही केस इन्वेस्टीगेशन का कार्य किया जाता है। इसे एएफपी ( एक्यूट फ्लैसिड पैरालिसिस ) कहा जाता है। इसमें इस बात की आशंका देखी जाती है कि कहीं बच्चे के अन्दर पोलियो के विषाणु तो नहीं हैं। पोलियो को जड़ से समाप्त कर दिया गया है, लेकिन यह जरुरी है कि हम सतर्क रहे। वर्ष 2021 में एएफपी के कुल 34 केस सामने आए थे। इन सभी की जांच निगेटिव पायी गयी थी। वहीं वर्ष 2022 में 8 महीने के अन्दर कुल 38 केस सामने आए हैं। इनकी भी स्टूल ( मल ) जांच की रिपोर्ट निगेटिव आई है। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र खलीलाबाद के अधीक्षक डॉ राधेश्याम यादव बताते हैं कि ब्लॉक क्षेत्र के मीरगंज में एक 12 वर्षीय बच्चा शिवांश पैरालाइसिस का शिकार हुआ था। एक निजी चिकित्सक ने इस बात की जानकारी दी तो हम लोगों ने उसका सैम्पल लेकर जांच के लिए भेजा है।
सेमरियांवा क्षेत्र में मिला था पोलियो का अन्तिम रोगी : मुख्य चिकित्सा अधिकारी बताते हैं कि जिले में पोलियो का अन्तिम रोगी वर्ष 2006 में सेमरियांवा क्षेत्र में पाया गया था। वहीं उत्तर प्रदेश में 2008 में पोलियो का अन्तिम रोगी अलीगढ़ जनपद में पाया गया था। भारत में पोलियों के अन्तिम रोगी की पुष्टि 2011 में पश्चिम बंगाल के हाबड़ा जनपद में हुई थी। इसके बाद से भारत पोलियोमुक्त घोषित कर दिया गया।
14 दिनों के अन्दर ही दें सूचना : लकवाग्रस्त बच्चे की अगर जानकारी हो तो 14 दिनों के अन्दर ही इस बात की सूचना दे दें, ताकि समय पर ही इसकी जांच कराई जा सके। 14 दिनों के बाद स्टूल के सैम्पल में पोलियो का वायरस समाप्त हो जाता है। इसलिए समय पर सूचना मिल जाने पर सही जांच संभव हो सकेगी।
मुखबिरों के जरिए एकत्र करते हैं सूचनाएं : इस कार्य के लिए जनपद के तमाम चिकित्सक इन्फार्मर ( मुखबिर ) का काम करते हैं। जैसे ही उनके अस्पताल में कोई इस तरह का लकवाग्रस्त मरीज आता है तो तुरन्त ही वह इसकी सूचना स्वास्थ्य विभाग को देते हैं। स्वास्थ्य विभाग इसके बाद अपनी टीम लेकर जाता है और उस बच्चे के स्टूल ( शौच ) का नमूना लेकर किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी की लैब को भेजता है। इसमें ध्यान इस बात का रखा जाता है कि नमूना लेने के 24 घण्टे के अन्दर ही इसकी जांच पूरी हो जाए।