- दो दिन अलग अलग बैच में दोनों विषयों पर दिया गया प्रशिक्षण
- एकीकृत निक्षय दिवस पर गुणवत्तापूर्ण सेवा देने पर विशेष जोर
गोरखपुर - कुष्ठ निवारण और टीबी उन्मूलन में योगदान के लिए जिले के 38 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) को प्रशिक्षण के जरिये दक्ष बनाया गया । यह प्रशिक्षण दोनों विषयों पर दो अलग अलग कार्यदिवसों पर दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान सीएचओ को एकीकृत निक्षय दिवस पर दोनों बीमारियों के प्रति उनकी भूमिका के बारे में खासतौर से संवेदीकृत किया गया।
जिला क्षय उन्मूलन व कुष्ठ निवारण अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव ने बताया कि सीएमओ डॉ आशुतोष कुमार दूबे के दिशा-निर्देशन में दस जनवरी को सीएचओ को टीबी सम्बन्धित प्रशिक्षण दिया गया और कार्यक्रम की समीक्षा भी की गयी । बारह जनवरी को कुष्ठ सम्बन्धित अभिमुखीकरण कार्यक्रम के साथ साथ राष्ट्रीय कुष्ठ निवारण कार्यक्रम की समीक्षा की गयी। जिले के समस्त सीएचसी और पीएचसी के अधीक्षक व प्रभारी चिकित्सा अधिकारियों के साथ ग्यारह जनवरी को राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के सम्बन्ध में समीक्षा बैठक भी की गयी । समुदाय में यह संदेश देने को कहा गया है कि कुष्ठ और टीबी दोनों इलाज से पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं। अगर समय से पहचान हो जाए तो छह महीने के इलाज में ही इन बीमारियों से मुक्ति पाई जा सकती है।
प्रशिक्षण में कंसल्टेंट डॉ भोला गुप्ता और डॉ आसिफ बताया कि अगर शरीर के किसी भी हिस्से में सुन्न दाग धब्बे हैं जिनका रंग चमड़े के रंग से हल्का है तो यह कुष्ठ हो सकता है । ऐसे मरीजों की समय से पहचान हो जाए तो मल्टी ड्रग थेरेपी (एमटीडी) के जरिये उन्हें पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है । कुष्ठ छूआछूत की बीमारी नहीं है । इसका संक्रमण ड्रॉपलेट्स से होता है । चूंकि इस बीमारी से कोई त्वरित पीड़ा नहीं होती है इसलिए मरीज लापरवाही वश समय से इलाज नहीं कराते हैं और कई बार बीच में ही इलाज छोड़ देते हैं। इससे यह बीमारी दिव्यांगता का रूप ले लेती है और मरीज का जीवन बोझ बन जाता है। समय से पहचान हो जाने से बीमारी से मुक्ति मिल जाती है। इलाज में देरी से लेप्रा रिएक्शन का भी खतरा होता जो मरीज को दिव्यांग बना देता है। इलाज के दौरान व बाद में भी लेप्रा रिएक्शन की आशंका होती है। त्वरित इलाज होने से यह भी पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के सम्बन्ध में उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप, जिला कार्यक्रम समन्वयक धर्मवीर प्रताप व पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र द्वारा सीएचओ को बताया गया कि दो सप्ताह से अधिक की खांसी वाले मरीजों की टीबी जांच अवश्य करवाएं। अगर एक टीबी मरीज की समय से जांच व इलाज न हो तो वह साल में दस से पंद्रह लोगों को बीमारी से संक्रमित कर सकता है । एकीकृत निक्षय दिवस पर ज्यादा से ज्यादा टीबी के संभावित मरीजों की बलगम जांच कराएं और जिन लोगों में टीबी की पुष्टि हो जाती है उन्हें दवा उपलब्ध कराना है और उन्हें परामर्श देना है कि टीबी का लक्षण आना बंद हो जाए तब भी दवा का पूरा कोर्स लेना है। बीच में इलाज छोड़ देने से मरीज ड्रग रेसिस्टेंट हो जाता है जिसका इलाज लम्बा एवं जटिल है। ड्रग रेसिस्टेंट टीबी से संक्रमित व्यक्ति भी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का ही मरीज बन जाता है। सरकारी अस्पताल में उपलब्ध सीबानॉट जांच, एचआईवी व मधुमेह जांच की सुविधा की भी जानकारी देनी है। मरीज को यह भी बताना है कि बैंक खाते का विवरण उपलब्ध कराने पर इलाज चलने तक 500 रुपये प्रति माह पोषण के लिए दिये जाते हैं।
उपयोगी रहा प्रशिक्षण : खोराबार के रामपुर हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर तैनात सीएचओ कुमारी नीलिमा ने बताया कि बीमारियों के बारे में तो पहले से जानकारी थी लेकिन कार्यक्रम के बारे में इस प्रशिक्षण के जरिये ही जानकारी मिली। मरीज को यह बताना है कि सरकारी अस्पताल में टीबी का सम्पूर्ण इलाज व हर प्रकार की जांचें उपलब्ध हैं। यह भी बताया गया कि एकीकृत निक्षय दिवस पर ओपीडी के दस फीसदी मरीजों की टीबी जांच करानी है और अगर टीबी की पुष्टि होती है तो उन्हें हर संभव सुविधा दिलवानी है। इसी ब्लॉक के गायघाट हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की सीएचओ देवकी यादव ने बताया कि कुष्ठ मरीज की पहचान के साथ बेहतर परामर्श की जानकारी मिली है। मरीज को मानसिक तौर पर तैयार करना है कि वह दवा न बंद करे। दवा की पहली खुराक लेने के बाद मरीज का पेशाब लाल हो जाता है और कई मरीज डर कर दवा बंद कर देते हैं। उन्हें परामर्श देना है कि कुष्ठ की दवा की पहली खुराक से पेशाब का सिर्फ रंग बदलता है और इससे डरने की आवश्यकता नहीं है।
टीबी के सामान्य लक्षण :
• दो सप्ताह या उससे अधिक की खांसी
• दो सप्ताह या उससे अधिक खांसी के साथ बलगम आना
• बलगम के साथ खून आना
• रात में पसीने के साथ बुखार
• तेजी से वजन घटना
• भूख न लगना
• अत्यधिक कमजोरी
कुष्ठ के सामान्य लक्षण :
• शरीर के किसी स्थान पर सुन्न दाग धब्बा
• धब्बे वाले स्थान पर बाल झड़ जाना
• धब्बे वाले स्थान की स्किन ड्राई हो जाना और वहां पर पसीना बिल्कुल न आना
• त्वचा में लाल रंग के उभरे हुए सूजन वाले धब्बे
• त्वचा में दाने जैसी गाढ़ें, मोटापन, भौहों का झड़ जाना
• बांह, कोहना या हाथ में सूजन, मोटापन एवं झनझनाहट
• कान के नीचे गर्दन व माथे पर मोटी तंत्रिकाएं