लखनऊ - आज यू पी प्रेस क्लब में ‘वन वाइस’ ने नवाब जाफर मीर अब्दुल्लाह की श्रद्वांजलि सभा का आयोजन कराया, जिसमें सभी धर्म व वर्ग के लोग उपस्थित थे। उपस्थित लोगो ने सूरे फातिहा पढ़कर और उनके चित्र पर फूल अर्पित करके श्रंद्वाजलि दी।
इतिहासकार रौशन तक़ी ने अपने साथ बीते हुए लम्हों का ज़िक्र करते हुए कहां, कि वह ऐसे शक्श थे, जो किसी को भी किसी काम के लिए मना नहीं करते थे, चाहे वह व्यक्ति पहली बार ही क्यों न मिला हो। उन्होंने बताया कि नवाब साहब से पहली मुलाक़ात थी, और मेरा ट्रांसफर लखनऊ के बाहर हो गया था, नवाब साहब ने मेरा ट्रांसफर रुकवाने में मेरे साथ दौड़े।
वही प्रो साबिरा हबीब ने कहां कि वह मेरे भाई थे, मै तो अब यतीम हो गयी, मुझे जब भी उनकी मदद की ज़रुरत होती, तो वह हाज़िर रहते थे। यह कहते हुए साबिरा हबीब रोने लगी और बोलते-बोलते चुप हो गयी। संस्था के चेयरमैन डा सैय्यद रफत ने एक शेर से अपनी बात कही - 'ज़माना बड़े शौक से सुन रहा था, हम ही सो गये, दास्तां कहते-कहते। आगे सैय्यद रफत ने वादा किया कि जल्द ही नवाब साहब के नाम से वह एक सम्मान का कार्यक्रम शुरू करेंगे। वहीं नवाब मसूद अब्दुल्लाह ने सरकार से मांग की, कि नवाब जाफर मीर अब्दुलल्लाह जी विरासत से जुड़े कामो को देखते हुए उनको पदमश्री सम्मान दिया जाये, और कोई सड़क या भवन का नाम उनके नाम पर रखा जाये।
संस्था के सचिव एस.एन.लाल ने कहा कि नवाब साहब की विरासत के जुड़े कामों को देखते हुए सरकार को उनको मरणोपरान्त सम्मान देना चाहिए। उन्होंने बताया नवाब साहब को जब भी जहां भी प्रोगाम में बुलाओ, तो वह हाज़िर रहते थे। अन्त में चचा अमीर हैदर ने नवाब साहब के साथ अपनी दोस्ती के किस्से बताये और उन्होंने बताया, वह हिन्दू-मुस्लिम व शिया-सुन्नी में एकता के लिए हमेशा कोशिश करते रहते थे। कार्यक्रम का संचालन डा मसीहउद्दीन ने किया और साथ नवाब साहब को सरकार की तरफ से सम्मान देने की बात कही।