लखनऊ - राजधानी के बाबू बनारसी दास वार्ड स्थित सामुदायिक केंद्र में बीते 6 अगस्त से श्री हरि गोपी मंडल के तत्वाधान में क्षेत्र वासियों के समर्पण व सहयोग से श्रीमद् भागवत ज्ञान महोत्सव का भव्य आयोजन किया जा रहा है श्री हरि गोपी मंडल की अध्यक्षा रचना गुप्ता ने बताया की यह भव्य महोत्सव 13 अगस्त तक चलेगा एवं विशाल भंडारा के साथ इस महोत्सव का समापन होगा इस भव्य ज्ञान महोत्सव में वृंदावन से पधारे पुष्टि मार्गीय शुद्धाद्वैत वल्लभवेदांती श्रीहरि सुरेश आचार्य जी द्वारा कथा का श्रवण किया जा रहा है श्रीहरी सुरेश आचार्य ने कहा की प्रभु श्रीकृष्ण के उपदेशों को आत्मसात कर सांसारिक जीवन से विमुक्त हो कर ही ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग संभव हो सकता है ईश्वर में सच्ची श्रद्धा रखने वाला ही परम सुख की प्राप्ति कर सकता है
कलिकाल में ईश्वर की उपासना किसी तीर्थ से कम नहीं : आचार्य श्रीहरी सुरेश ने बताया भगवान श्री कृष्ण गीता उपदेश में कहते है की व्यर्थ की चिंता क्यों करते हो ,और व्यर्थ में ही डरते हो ,तुम्हें कौन मार सकता है, आत्मा ना पैदा होती है ना ही मरती है। जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह भी अच्छा ही है, जो होगा ,वह भी अच्छा ही होगा ,जो बीत गया उसका तुम पछतावा ना करो और भविष्य की चिंता भी ना करो ,अभी तो वर्तमान चल रहा है।गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि जो भी मनुष्य भगवद गीता की अठारह बातों को अपनाकर अपने जीवन में उतारता है वह सभी दुखों से, वासनाओं से, क्रोध से, ईर्ष्या से, लोभ से, मोह से, लालच आदि के बंधनों से मुक्त हो जाता है ।
श्रीकृष्ण रुक्मणी विवाह प्रसंग सुनकर लोग हुए भावविभोर : आचार्य जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण और रुक्मणी के विवाह की एक अनूठी कहानी है रुकमणी बिना देखे ही श्रीकृष्ण को मन ही मन प्रेम करने लगी थी जब रुक्मणी का विवाह शिशुपाल से तय हुआ तो श्री कृष्ण ने रुक्मणी का हरण कर उन्हें द्वारिका ले आए और रुकमणी से विवाह किया विदर्भ देश के राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मिणी बुद्धिमान, सुंदर और सरल स्वभाव वाली थीं. पुत्री के विवाह के लिए पिता भीष्मक योग्य वर की तलाश कर रहे थे. राजा के दरबार में जो कोई भी आता वह श्रीकृष्ण के साहस और वीरता की प्रशंसा करता. कृष्ण की वीरता की कहानियां सुनकर देवी रुक्मिणी ने उन्हें मन ही मन अपना पति मान लिया था.
भटक रही युवा पीढ़ी को पढ़ाएं नैतिकता का पाठ : आधुनिकता के चलते धर्म के प्रति लोगो में अभीरुचि कम हुई है लेकिन समाप्त नहीं हुई है खासकर युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति और धर्म का पुनः बोध करना आवश्यक है जिससे की भविष्य की पीढ़ी को संस्कारवान बनाया जा सके। मात्रा आधुनिक शिक्षा से युवा पीढी का कल्याण संभव नहीं हो सकता है, हर व्यक्ति का समाज, परिवार, दोस्तों व अपने काम के प्रति कुछ न कुछ दायित्व होता है। इसे निभाने के लिए हमें गंभीर भी होना चाहिए। हमें अपने दायित्व को निभाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इन सभी दायित्वों में देश के प्रति कुछ करना, हमारा प्रमुख दायित्व है। हमें किसी न किसी रूप में इसे पूरा भी करना चाहिए। जरूरतमंदों की मदद, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमें हमेशा आगे आना चाहिए। युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाना, उसे अच्छे-बुरे की समझ करवाकर भी हम अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं। आज की युवा आधुनिकता के रंग में अपने संस्कारों, नैतिकता और बड़ो का आदर करना भूल रही है। हमारा दायित्व है कि युवा पीढ़ी को सही मार्ग दिखाएं, ताकि आने वाला कल अच्छा हो। जहां पर बच्चा गलत करता है उसे टोकना चाहिए।