साहित्य और साहित्यकार ही हमारी परम्परा को यशस्वी बनाते हैं -केशव प्रसाद मौर्य



लखनऊ(आरएनएस)। जिस राष्ट्र के नागरिक और वहाँ का समाज यदि साहित्य और अपने साहित्यकार का सम्मान नहीं करता तो वह देश अपनी परम्परा को लम्बे समय तक जीवित रख नही पाता। ये साहित्य और साहित्यकार ही हमारी परम्परा को यशस्वी बनाते हैं। अतः इनका सम्मान हमारा कर्तव्य है। भाऊराव देवरस सेवा न्यास युवा साहित्यकारों को सम्मानित कर उसी राष्ट्रीय जिम्मेदारी को निभा रहा है।

उक्त बातें लखनऊ स्थित माधव सभागार सरस्वती कुंज, निराला नगर में भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा आयोजित 29वें पं. प्रतापनारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहीं । उन्होंने कहा कि आप जिनका जीवन सम्मानित प्रचारक के रूप में रहा और आगामी पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्पद साहित्य लिखनेवाले पं. प्रतापनारायण मिश्र के नाम से दिया जाने वाले सम्मान का कार्यक्रम कई मायने में महत्वपूर्ण है। भाऊराव देवरस जी के नाम से बने इस न्यास के द्वारा सेवा के इतने कार्य किए जा रहे हैं वह समाज को जोड़नेवाले महत्वपूर्ण कार्य हैं। अलग-अलग राज्यों से चुनकर साहित्यकारों को उनके लेखन के लिए उन्हें सम्मानित हर वह अच्छी और सही चीज समाज के सामने लाने के लिए साहित्यजगत् में जो कार्य हो रहा है वह उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य हो रहा है। साहित्यकारों की भूमिका प्रबल है, क्योंकि साहित्यकार सप्रमाण विचारों को उद्वेलित करने का कार्य साहित्यकार करते हैं।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ अरुण सक्सेना, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) वन एवं पर्यावरण ने कहा कि न्यास शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के क्षेत्र में बहुत सराहनीय कार्य कर रहा है। युवा साहित्यकारों को केवल उप्र से ही नहीं अपितु पूरे देश से चयन को प्रत्येक व्यक्ति साहित्यकार नहीं हो सकता है। जन्मजात गुणों से युक्त होने के कारण ही साहित्यकार बन पाते हैं। साहित्यकार समाज को बेहतर बनाने के लिए निरन्तर कार्य करते हैं अतः साहित्यशिल्पी के साथ ही समाजशिल्पी भी होता है। सम्मान समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. संजय सिंह कुलपति बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ ने कहा अपने वैचारिक धरातल को साहित्यकार लोग मजबूती प्रदान करते हैं अतः साहित्यकार की उपादेयता सभी युग में रही है। मेरा यह मानना है कि भाऊराव जी जैसे चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनी महापुरुष के नाम पर गठित यह न्यास समाज के अन्तिम छोर पर रहनेवाले अभावग्रस्त लोगों की चिन्ता तो करता ही है साथ ही प्रेरणापूर्ण साहित्य को लिखने का क्रम बना रहे इस निमित्त न्यास नवोदित साहित्यकारों को समाज के सामने लाने का कार्य किया जा रहा है। सभी को जोड़कर सभी को साथ लेकर चलने वाले ज्ञान ही सच्चा साहित्य है। जुड़ने के भाव होने के कारण ही सच्ची साहित्य ही दीर्घजीवी हो पाता है। हमारी संस्कृति में संस्कार का महत्व केवल व्यक्ति के जीवन में ही नहीं अपितु साहित्य में सभी संस्कार दिखे इस अपेक्षा साहित्यकार और वैज्ञानिक दोनों का सृजन का कार्य करते हैं और सृजन समाज के समस्याओं के समाधान करने की दृष्टि से करते हैं। परन्तु वैज्ञानिक को सृजन के लिए लम्बी प्रक्रिया से गुजरने पड़ता है। परन्तु साहित्यकार को अपने भाव को वाक्यों मे समेटने में लम्बी प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता है। अतः साहित्यकार कम समय में ही सृजन कर समाज को लाभ पहुँचाता है और उसका प्रभाव भी दिखता है।