किशोरावस्था : खुलकर बात करें - सेहतमंद व हुनरमंद बनें - मुकेश कुमार शर्मा



  • यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य जागरूकता दिवस (12 फरवरी) पर विशेष

किशोरावस्था यानि 10 से 19 वर्ष की उम्र शारीरिक, मानसिक और सामाजिक बदलाव की अवस्था होती है। यह एक तरह से युवावस्था के संकेत हैं और स्वाभाविक रूप से विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण का दौर भी। इतना ही नहीं यह ऐसा समय होता है जब मन में तरह-तरह के तमाम विचार उमड़ते-घुमड़ते हैं। मन में उठने वाली जिज्ञासाओं और कौतूहलों का हल पाने के लिए युवा वर्ग अक्सर इंटरनेट का सहारा लेते हैं, जिस पर बेशक तमाम जानकारियां मौजूद हैं लेकिन उनमें बहुत सी जानकारियां वास्तविकता से परे भी होती हैं। किशोर-किशोरियां शारीरिक बदलावों और जिज्ञासाओं के बारे में परिवार से भी चर्चा करने में संकोच और असहज महसूस करते हैं। इन्हीं असहजता से अपने भविष्य के कर्णधारों को बचाने के लिए हर साल 12 फरवरी को यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य जागरूकता दिवस मनाया जाता है।

इस दिवस का उद्देश्य किशोर/किशोरियों और युवाओं को यौन व प्रजनन स्वास्थ्य के विषय में जागरूक कर बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करना और तरक्की की राह प्रशस्त करना है। भारत युवा जनसँख्या के मामले में विश्व में अग्रणी है और देश की 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की है। इसे डेमोग्राफिक डिविडेंट कहते हैं और यह भारत के भविष्य के लिए एक सुनहरा संकेत है। मजबूत युवा वर्ग, युवा वर्ग के मजबूत कंधे, मजबूत सांस्कृतिक एवं सामाजिक विरासत निश्चित रूप से एक शक्तिशाली भारत के भविष्य के लिए आधार स्तम्भ समान है ।

किशोरावस्था में स्वयं की पहचान बनाना, रोक-टोक पसंद न करना, यौन संवेदनाएं और विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण का भाव भी जन्म लेता है। इस दौरान वह घर-परिवार से अलग बाहरी लोगों के सम्पर्क में भी आते हैं। कई बार दोस्त ही माता-पिता से ज्यादा करीबी समझे जाने लगते हैं। अपनी विशेष पहचान बनाने की कामना से युवा अपना सामाजिक दायरा बढ़ाते हैं। ऐसे में उनका सम्पर्क और सम्बन्ध अच्छे और बुरे दोनों तरह के लोगों से होने की संभावना होती है। इसलिए उनको बुराई के रास्ते पर जाने से बचाने के लिए खुलकर बात करना बहुत जरूरी है। इसी उद्देश्य से स्कूलों में किशोर/किशोरियों की काउंसिलिंग की व्यवस्था की गयी है। किशोर स्वास्थ्य क्लिनिक और साथिया केंद्र स्थापित किये गए हैं। क्लिनिक पर प्रशिक्षित काउंसलर की तैनाती की गयी है, जो किशोरावस्था के बारे में सही जानकारी देने के साथ ही स्वास्थ्य समस्याओं का निदान भी करते हैं। इसके अलावा सरकारी अस्पतालों के चिकित्सकों, आशा, एएनएम और घर के निकट स्थित आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर तैनात सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी (सीएचओ) की भी मदद ली जा सकती है।   
     
 किशोर/किशोरियों को स्वास्थ्य के साथ ही उन्हें सही राह दिखाने की भी आवश्यकता होती है क्योंकि भविष्य में वह देश की आर्थिक, राजनीतिक एवं सामजिक उत्थान में बड़ी भूमिका निभायेंगे। इस अवस्था के बच्चों के समुचित विकास के लिए यह भी जरूरी है कि उनके खानपान का भी पूरा ख्याल रखा जाए। विकास का स्वरूप ले रही शरीर के मुताबिक़ आयरन-कैल्शियम की पर्याप्त जरूरत होती है, जिसके लिए उन्हें दूध के साथ हरी साग-सब्जियां भी पर्याप्त मात्रा में खिलानी चाहिए। इसी अवस्था में किशोरियों में माहवारी की भी शुरुआत होती है, जिसके बारे में भी उनको सही जानकारी देना जरूरी होता है। उनको माहवारी के दौरान व्यक्तिगत साफ़-सफाई रखनी चाहिए। माहवारी के दौरान केवल साफ़ सूती कपड़े, पैड या सेनेटरी नैपकिन का ही इस्तेमाल करना चाहिए और दिन में तीन से चार बार या जब यह गीला महसूस हो तो बदल लेना चाहिए। भोजन में आयरन की मात्रा बढ़ानी चाहिए और गरिष्ठ भोजन से परहेज करना चाहिए। इस दौरान पेट के निचले हिस्से में ऐंठन या दर्द महसूस हो सकता है, थकावट या निराशा का भाव आ सकता है, इसलिए इस दौरान ज्यादा से ज्यादा आराम करना चाहिए ।
 
 किशोर/किशोरियों में प्राय: नए प्रयोग करने की भी आदत होती है। यह आदत कभी लाभप्रद तो कभी अनुभव और क्षमता की कमी से जोखिमपूर्ण भी साबित हो सकती है। इसके चलते वह धूम्रपान, मादक पदार्थों व अल्कोहल के सेवन और यौन सम्बन्ध बनाने की गतिविधियों में भी लिप्त हो सकते हैं।  शौकिया शुरू हुई यह आदत कभी-कभी जीवन भर के लिए घेर लेती है। इसलिए सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए इन शौकिया आदतों से तौबा करने में ही भलाई है। इससे इतर विवाह पूर्व यौन क्रिया के कारण अविवाहित गर्भावस्था के मामले भी बढ़ सकते हैं। ऐसे में खासकर उन युवाओं जो कि पहले से यौन दुर्व्यवहार के शिकार रहे हों को विशेष देखभाल और सहारे की जरूरत होती है। उन तक आवश्यकता होने पर आपातकालीन गर्भनिरोधकों की पहुँच आसान बनानी चाहिए। नए और बदलते परिवेश में स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को भी मुद्दों के प्रति संवेदनशील होना जरूरी है। उन्हें यह जानकारी होनी चाहिए कि ऐसे किशोर/किशोरियों तक स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाओं की पहुँच को किस तरह से सुगम बनाया जाए, जिन्हें इनकी आवश्यकता पड़ सकती है। इसमें प्रशिक्षित काउंसलर बहुत मददगार साबित हो सकते हैं क्योंकि किशोर/किशोरियां गोपनीयता भंग होने के डर से इन विषयों पर बात करने से कतराते हैं।   
          
(लेखक स्वयंसेवी संस्था पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल - इंडिया के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं )