बढ़ता पर्यावरण प्रदूषण जलवायु परिवर्तन को दे रहा ताकत



  • जलवायु परिवर्तन आज विश्व के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती
  • आज नहीं चेते तो सेहत के साथ ही धरती के संतुलन को देंगे बिगाड़ - हितेश साहनी

जलवायु परिवर्तन आज विश्व के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती के रूप में है, जिससे निपटने की दिशा में सरकार के साथ ही समुदाय को भी जागरूक बनने की सख्त जरूरत है। जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक़ 19वीं सदी के अंत से अब तक पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में करीब एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गयी है। इतना ही नहीं पिछली सदी से अब तक समुद्र के जल स्तर में भी वृद्धि दर्ज की गई है। यह आंकड़े हमें सचेत करते हैं कि जलवायु परिवर्तन की दिशा में हम आज सचेत नहीं हुए तो आने वाले समय में गंभीर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना होगा।
 
जलवायु परिवर्तन को गंभीर चुनौती बनाने में पर्यावरण प्रदूषण की अहम भूमिका है क्योंकि  विश्व में तेजी से बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण ने विकसित राष्ट्र बनने की डगर तो आसान की है लेकिन जलवायु परिवर्तन से होने वाली समस्याओं को जन्म भी दिया है। कारखानों और गाड़ियों के साथ ही धूल, धुंआ और धूम्रपान व अन्य वजहों से आज पर्यावरण प्रदूषण की गिरफ्त में देश के कई बड़े शहर हैं। स्वच्छ हवा में सांस लेना तक दूभर हो गया है। यह स्थिति हमारे स्वास्थ्य पर तो गहरा असर डाल ही रही है साथ ही खाद्यान्न उत्पादन और उसकी पौष्टिकता में कमी जैसी समस्या को भी जन्म दिया है।  धरती का तापमान निरंतर बढ़ने से फेफड़ों से लेकर कई अन्य गंभीर बीमारियां लोगों को असमय घेरती जा रहीं हैं। जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्रीन हॉउस गैसों का उत्सर्जन इसी तरह जारी रहा तो तापमान में अभी और वृद्धि हो सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पर नियन्त्रण के लिए कुछ जरूरी कदम तत्काल उठाने की जरूरत है, जिसमें सबसे पहली जरूरत तो यही है कि हम अपनी आदतों में जरूरी बदलाव लायें। सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करें, इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड वाहनों को बढ़ावा दें, प्लास्टिक का उपयोग बंद करें, ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करें आदि। यही छोटी-छोटी आदतें हमारे भविष्य को सुरक्षित बनाने में मददगार हो सकती हैं। प्लास्टिक ग्लोबल वार्मिंग का बहुत बड़ा कारण है क्योंकि यह जल्दी नष्ट नहीं होती, इसलिए इसको चलन से बाहर करना आज की नितांत आवश्यकता है। औद्योगीकरण या शहरीकरण के नाम पर जंगलों या वनस्पतियों को उजाड़ा जाता है तो उनके स्थान पर वृक्षारोपण को अनिवार्य कर देना चाहिए।

ज्ञात हो कि पृथ्वी के चारों ओर ग्रीनहाउस गैस की परत बनी हुई है, इसमें मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैस शामिल हैं। अब आधुनिक युग में जैसे-जैसे मानवीय गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, वैसे-वैसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी वृद्धि हो रही है और जिसके कारण वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधन जलाने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जित होता है जो ग्लोबल वार्मिंग में प्रमुख योगदान देता है, इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से वातावरण में कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आएगी।

जलवायु परिवर्तन पर नजर रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने वैज्ञानिकों का एक विशेष पैनल भी बनाया है, जिसमें 195 सदस्य देश शामिल हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम विज्ञान संगठन की स्थापना की गयी है। इसके साथ ही एक अंतरराष्ट्रीय समझौता भी हुआ है, जिसको नाम दिया गया है संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन जो वायु मंडल में ग्रीन हॉउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने की दिशा में अग्रसर है। इसकी वार्षिक बैठक को कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज़ (सीओपी) के नाम से जाना जाता है। इतना ही नहीं वर्ष 2015 में 195 देशों की सरकारों के प्रतिनिधियों ने पेरिस में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये संभावित नए वैश्विक समझौते पर भी चर्चा की। इसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लक्ष्य के साथ पेरिस समझौते को ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते के रूप में भी मान्यता मिली है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना भी तैयार की गयी है, जिसका उद्देश्य जनता के प्रतिनिधियों, सरकार की विभिन्न एजेंसियों, वैज्ञानिकों, उद्योग और समुदायों को जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे और इससे मुकाबला करने के उपायों के बारे में जागरूक करना है।


 (लेखक पापुलेशन सर्विसेज इंटरनेशनल इंडिया के प्रोग्राम डायरेक्टर हैं)