टीबी चैंपियन ने मिलकर मेट्रो कर्मचारियों को किया जागरूक



  • सामुदायिक बैठकों के ज़रिये बता रहे टीबी की गंभीरता
  • उच्च जोखिम वालों के लिए विभाग का प्रयास  

कानपुर  - टीबी दशकों से बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक समस्या है। इसका नाम सुनकर लोग अपनों से दूरी बना लेते हैं। यह उचित नहीं है। इसी डर से मरीज इलाज के लिए नहीं आते हैं। ऐसे सामाजिक भेदभाव और भय को न केवल समाज बल्कि स्वास्थ्य प्रणाली में भी बदलना होगा। जिला क्षय रोग विभाग और वर्ल्ड विजन संस्था के साथ टीबी चैंपियन लोगों को कुछ ऐसा ही सन्देश दे रहे हैं। मेट्रो कर्मचारियों सहित निर्माणाधीन मेट्रो में कार्य कर रहे मजदूरों को मंगलवार को टीबी चैंपियंस ने टीबी के बारे में जागरूक किया। साथ ही टीबी के प्रति समाज में फैली भ्रांतियों जैसे टीबी लाइलाज है, यह गरीबों की बीमारी है, यह अनुवांशिक है, छुआछूत से फैलती है को भी दूर किया।

सोमवार को चुन्नीगंज स्थित मेट्रो स्टेशन पहुंची टीबी चैंपियन दुर्गा सैनी ने बताया कि जनपद की 26 टीबी यूनिट पर मुफ्त जांच की सुविधा उपलब्ध है। यहां पर मरीज की स्क्रीनिंग की जाती है। यदि टीबी है तो मरीज को दवा को बीच में नहीं छोड़ना चाहिए, नियमित दवा का सेवन करने से टीबी ठीक हो जाती है। रोग के लक्षण आने पर बलगम की जांच कराने की सलाह भी दी। इसी कड़ी मे ग्वालटोली में स्वयं सहायता समूह के महिलाओं को जागरूक करने पहुंची टीबी चैंपियन निदा ने बताया कि टीबी (क्षय) अब लाइलाज बीमारी नहीं है, बल्कि समय पर रोग के लक्षणों की पहचान कर इलाज शुरू कराने से टीबी ग्रस्त की जिंदगी बचाई जा सकती है। टीबी रोग से निजात पाने के लिए टीबी से ग्रसित मरीज को उपचार के अंतर्गत नियमित रूप से प्रतिदिन सेवन करने के लिए दवाइयां दी जाती हैं। दवाइयों का नियमित सेवन करने से मरीज शत प्रतिशत रोगमुक्त हो सकता है।

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. एपी मिश्रा ने बताया - कुछ ऐसे व्यावसायिक समूह हैं, जिनमें खनिज, स्टोन क्रशर, कपास मिलों, चाय बागानों, निर्माण, कांच और बुनाई उद्योगों, असंगठित श्रमिकों, चाय बागान श्रमिकों आदि में कार्यरत श्रमिक शामिल हैं। श्रमिकों के इन समूहों को विभिन्न कारणों से टीबी संक्रमण होने का अधिक खतरा होता है जैसे कि श्वसन प्रणाली के लिए हानिकारक विषाक्त पदार्थों / सामग्रियों के संपर्क में आना और पर्याप्त वेंटिलेशन के बिना भरे हुए स्थानों में काम करना । विभाग टीबी चैम्पियन की मदद से इन समूहों को जागरूक करने का प्रयास कर रहा है ।

बीच में इलाज छोड़ने से स्थिति हो सकी है गंभीर : डॉ मिश्रा ने कहा - टीबी से घबराएं नहीं, इसे खत्म करने के लिए पूरा इलाज कराएं। दो से तीन हफ्ते तक लगातार इलाज कर लिया जाए तो इसके बैक्टीरिया निष्क्रिय हो जाते हैं। बैक्टीरिया में संक्रमण फैलाने की क्षमता खत्म हो जाती है। उन्होंने टीबी मरीजों से भेदभाव न करने की भी अपील की और कहा कि बार-बार टीबी का इलाज छोड़ना घातक हो सकता है। इससे मरीज़ दवाओं के प्रति रजिस्टेंट हो जाता है। नतीजतन टीबी की सामान्य दवाएं बेअसर हो जाती है। मरीज़ घातक टीबी की चपेट में आ सकता है। इसका इलाज दो साल चलता है। कहा कि दवा संग अच्छा पोषण मरीज को जल्द सेहतमंद होने में मदद करता है।

जिला कार्यक्रम समन्वयक राजीव सक्सेना ने बताया कि घर के किसी भी सदस्य में फेफड़े की टीबी की पुष्टि हो तो दो से तीन हफ्ते तक मरीज मास्क लगाकर रहे। तौलिया या बर्तन आदि अलग करने की जरूरत नहीं है। इसके अलावा टीबी मरीज के घर के सदस्य टीबी प्रिवेंशन ट्रीटमेंट (टीपीटी) के तहत बचाव के लिए डॉक्टर की सलाह लें।

दवा के साथ पोषण ज़रूरी : जिला कार्यक्रम समन्वयक ने बताया कि टीबी मरीजों में कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। दो हफ्ते से अधिक समय खांसी आना,पसीना आना, बुखार का बने रहना, थकावट होना, वजन घटना, सांस लेने में परेशानी आदि लक्षण टीबी के हो सकते हैं| सरकार टीबी की जाँच और उपचार के सुविधा दे रही है| साथ ही निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये प्रतिमाह की आर्थिक मदद दी जाती है। टीबी की दवा के साथ-साथ मरीज के पोषण का भी ध्यान रखना चाहिए