दो सितम्बर से खोजे जाएंगे कुष्ठ रोगी, घर घर जाएगी स्वास्थ्य विभाग की टीम



  • कुष्ठ रोगी खोजी अभियान के संबंध में जिला स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला का हुआ आयोजन
  • दो वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की लक्षण के आधार पर उनके घर पर ही होगी स्क्रीनिंग

कानपुर - शरीर पर चमड़े के रंग से हल्के रंग का सुन्न दाग धब्बा कुष्ठ भी हो सकता है। अगर ऐसे लक्षण हों तो तुरंत जांच करवा कर बीमारी पुष्ट होने पर इलाज कराना चाहिए। समय से बीमारी की पहचान होने पर कुष्ठ का सम्पूर्ण इलाज संभव है। इसके विपरीत देरी पर कुष्ठ दिव्यांगता का रूप ले सकता है। इन संदेशों को जन जन में प्रसारित कर लक्षणयुक्त लोगों को कुष्ठ जांच के लिए प्रेरित करें। यह बातें मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आलोक रंजन ने कहीं। उन्होंने कुष्ठ रोगी खोजी अभियान के संबंध में जिला स्तरीय प्रशिक्षण कार्यशाला को जिला क्षय रोग केंद्र में संबोधित करते हुए विस्तार से जानकारी दी। अभियान के दौरान स्वास्थ्य विभाग की टीम घर घर जाएंगी और दो वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की लक्षण के आधार पर स्क्रीनिंग करेंगी।

जिला कुष्ठ रोग नियंत्रण अधिकारी डॉ महेश कुमार ने बताया कि इस बार यह अभियान प्रदेश के 47 जनपदों के 550 विकास खंडों में चलना है। जनपद में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के दिशा निर्देशन में सभी 10 ब्लॉक और शहरी क्षेत्र में अभियान चलेगा। ग्रामीण क्षेत्र में आशा कार्यकर्ता और एक पुरुष सदस्य की टीम, जबकि शहरी क्षेत्र में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और एक पुरुष सदस्य की टीम लक्षणयुक्त व्यक्तियों की स्क्रीनिंग करेंगी। इसके बाद चयनित किये गये संभावित कुष्ठ रोगियों को नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर संदर्भन पर्ची के साथ रेफर किया जाएगा। यह अभियान 14 दिन चलेगा। इसे पल्स पोलियो अभियान की भांति चलाया जाना है।

डॉ कुमार ने बताया कि अगर शरीर पर चमड़ी के रंग से हल्का कोई भी सुन्न दाग धब्बा हो तो कुष्ठ की जांच अवश्य करानी चाहिए । हल्के रंग के व्यक्ति की त्वचा में गहरे और लाल रंग के भी धब्बे हो सकते हैं। हाथ या पैरों की अस्थिरता या झुनझुनी, हाथ पैर व पलकों में कमजोरी, नसों में दर्द, चेहरे या कान में सूजन अथवा घाव और हाथ या पैरों में दर्द रहित घाव भी इसके लक्षण हैं ।

प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान जिला कुष्ठ रोग परामर्शदाता डॉ संजय ने बताया कि लोगों तक यह भी संदेश पहुंचाएं कि कुष्ठ अधिक संक्रामक बीमारी नहीं है और यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक आसानी से नहीं पहुंचता है। एक बार उपचार शुरू होने के बाद संक्रमण की आशंका शून्य हो जाती है । इसका उपचार सभी ब्लॉक स्तरीय अस्पतालों पर उपलब्ध है । कुष्ठ रोगी को परिवार और समुदाय से अलग नहीं करना है। वे सामाजिक कार्यक्रमों में भी हिस्सा ले सकते हैं ।

इस मौके पर सभी अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी, उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी, नान मेडिकल असिस्टेंट (एनएमए) और फिजियोथेरेपिस्ट समेत सभी ब्लॉक के राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम से जुड़े कर्मी मौजूद रहे।

दो प्रकार का होता है कुष्ठ :डॉ संजय ने बताया कि कुष्ठ सुन्न दाग धब्बों की संख्या जब पांच या पांच से कम होती है और कोई नस प्रभावित नहीं होती या केवल एक नस प्रभावित होती है तो मरीज को पासी बेसिलाई (पीबी) कुष्ठ रोगी कहते हैं जो छह माह के इलाज में ठीक हो जाता है । अगर सुन्न दाग धब्बों की संख्या छह या छह से अधिक हो और दो या दो से अधिक नसें प्रभावित हों तो ऐसे रोगी को मल्टी बेसिलाई (एमबी) कुष्ठ रोगी कहते हैं और इनका इलाज होने पर साल भर का समय लगता है। कुष्ठ रोगी को छूने और हाथ मिलाने से इस रोग का प्रसार नहीं होता। रोगी से अधिक समय तक अति निकट संपर्क में रहने पर उसके ड्रॉपलेट्स के जरिये ही बीमारी का संक्रमण हो सकता है ।