बुखार व शरीर दर्द को मामूली समझकर की अनदेखी, जांच में निकली टीबी



  • एसीएफ अभियान में मिले मरीजों ने साझा किए अनुभव
  • जनपद में मिले 81 नए टीबी मरीज
  • 24 फरवरी से पांच मार्च तक चला अभियान

औरैया - ब्लॉक अछल्दा की निवासी 35 वर्षीया महिला ने बताया कि कुछ महीनों से शरीर में कमजोरी महसूस हो रही थी। घर का कुछ भी काम करने से थकावट हो जाती थी।खांसी भी आ रही थी। बच्चों से बोलकर मेडिकल स्टोरसे दर्द की गोली मंगाकर खा लेती थी। कुछ देर के लिए आराम मिल जाता था। कभी सोंचा नहीं था कि यह कोई गंभीर बीमारी भी हो सकती है। 15 दिन पहले घर पर आये दो स्वास्थ्य कर्मियों को दिक्कत बताने पर उन्होंने टीबी की जांचकरायीतो रिपोर्ट पाजिटिव आई। इसी तरह ब्लॉक सहार के रहने वाले 27 वर्षीय युवक ने बताया कि वह कानपुर में रहकर मजदूरी करते हैं । एक महीना पहले ही घर लौटे हैं । मुंबई में बुखार आ रहा था। दवा खाने पर आराम भी मिल जाता था। इस पर कोई खास तवज्जो नहीं दिया। कभी सोंचा नहीं था कि यह टीबी हो सकती है। गांव में आई स्वास्थ्य विभाग की टीम को बार-बार बुखार आने की बात बताई। टीम ने तुरंत जांच करवाई, इसमें टीबी रोग की पुष्टि हुई। अब वह बिना लापरहवाही के दवा ले रहे हैं।

जिला क्षयरोग अधिकारी डॉ संत कुमार ने बताया कि 24 फरवरी से पांच मार्च तक विशेष सक्रिय क्षय रोगी खोज अभियान (एसीएफ) चलाया गया। शहरी व ग्रामीण स्तर पर टीम ने घर-घर जाकर लोगों की जांच की। जनपद में कुल आबादी में 20 प्रतिशत की स्क्रीनिंग की गई। संभावित मरीज मिलने पर उनकी जांच कराई गई। इसमें 81 टीबी मरीजों को चिन्हित किया गया, जिनका इलाज शुरू कर दिया गया है। इलाज के दौरान सही पोषण के लिए निक्षय पोषण योजना के तहत हर माह 500 रुपये भी सीधे बैंक खाते में दिए जाते हैं।

सरकारी इलाज लेने में ही समझदारी : जिला क्षयरोग अधिकारी ने बताया की बिना सोचे समझे व बिना सही जांच के बाहर के महंगे इलाज के चक्कर में न पड़ें| महंगे इलाज से टीबी मरीज/ परिवारीजनों की आर्थिक स्थिति तो खराब होती ही है साथ में रोग भी गंभीर हो जाता है| ऐसे हालात में विकल्पहीनता में सरकारी इलाज लेना मजबूरी बन जाती है| जनपद के तमाम मरीज तब सरकारी इलाज लेना शुरू किया जब उनकी स्थिति ज्यादा बिगड़ गयी | इसलिए शुरूआत से सरकारी इलाज लेने में ही समझदारी है|

जांच की है पूरी व्यवस्था, इलाज में न करें देरी : राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के जिला पीपीएम समन्वयक रविभान सिंह ने बताया कि जिले में कुल आठ टीबी यूनिट हैं। जांच के लिए 14 माइक्रोस्कोपिक सेंटर हैं, जहां बलगम की जांच होती है। दो एलईडी माइक्रोस्कोप हैं, एक सीबीनाट व चार टू-नाट मशीन है। एक डीआरटीबी सेंटर है, जिसमें चार बेड हैं। जिले में जांच और इलाज की पूरी व्यवस्था है तो ऐसे में लक्षण जैसे- दो हफ्ते से अधिक समय से खांसी-बुखार आने, बलगम से खून आने, वजन गिरने आदि की समस्या नजर आने पर जांच में देरी न करें। स्वास्थ्य विभाग की इन सुविधाओं का लाभ उठाते हुए घर-परिवार और समाज को भी टीबी से सुरक्षित बनाएं।