लखनऊ। किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभागाध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने दीपावली के अवसर पर लोगों से सुरक्षित और प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाने की अपील की है। उन्होंने कहा कि दीपों का यह पर्व प्रकाश और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है, इसे पटाखों की धमक और धुएं से नहीं, बल्कि दीपों की रोशनी से मनाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि पौराणिक पृष्ठभूमि के अनुसार, इस दिन को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की अयोध्या वापसी से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि चौदह वर्ष के कठिन वनवास और अत्याचारी रावण का वध करने के बाद श्रीराम इसी दिन अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने दीप जलाकर उनका भव्य स्वागत किया था। आधुनिक विज्ञान और गूगल सर्च से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि लंका से अयोध्या आने में लगभग 20–21 दिन लगते हैं। यही कारण है कि दशहरे के लगभग 20 दिन बाद दीपावली मनाई जाती है। समय के साथ दीपावली का स्वरूप काफी बदल चुका है। अब यह केवल धार्मिक उत्सव नहीं रहा, बल्कि आर्थिक और मनोरंजन की परंपराओं से भी जुड़ गया है। आतिशबाजी का अत्यधिक प्रयोग इसमें सबसे गंभीर समस्या बन चुका है। इससे वायु प्रदूषण का स्तर 200 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जो लंबे समय तक अपने जहरीले असर छोड़ता है।
ऑर्गेनाइजेशन फॉर कंजर्वेशन ऑफ एनवायरनमेंट एंड नेचर के अध्यक्ष डा. सूर्यकान्त ने बताया कि आतिशबाजी के धुएं में कैडमियम, बेरियम, रूबीडियम, स्ट्रॉन्शियम और डाइऑक्सिन जैसे खतरनाक रसायन पाए जाते हैं। ये तत्व फेफड़ों, हृदय, आंखों और त्वचा पर गंभीर असर डालते हैं। आतिशबाजी से निकलने वाला धुआं न केवल वायु, बल्कि जल और मिट्टी को भी प्रदूषित करता है।
डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि भारत में लगभग 4 करोड़ लोग अस्थमा और 6 करोड़ लोग सी.ओ.पी.डी. जैसी सांस की बीमारियों से पीड़ित हैं। ऐसे लोगों के लिए दीपावली का समय एक दुःस्वप्न साबित हो सकता है, क्योंकि पटाखों का धुआं और महीन धूल उनके फेफड़ों में आसानी से प्रवेश कर दम घुटने, दमा का दौरा पड़ने या दिल की परेशानी बढ़ाने का कारण बनता है।
उन्होंने दीपावली के अवसर पर सांस संबंधी रोगियों को विशेष सावधानी बरतने की अपील की है। उन्होंने कहा कि अस्थमा, सी.ओ.पी.डी. और एलर्जी से पीड़ित व्यक्तियों के लिए दीपावली का समय विशेष रूप से सतर्क रहने का होता है, क्योंकि इस दौरान वायु में धूल, धुआं और प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है। ऐसे रोगी जितना संभव हो घर के अंदर रहें और अधिक से अधिक तरल पदार्थ ग्रहण करें। वायु प्रदूषण अधिक होने की स्थिति में मास्क का प्रयोग करें तथा इनहेलर का नियमित रूप से उपयोग करते रहें। उन्होंने सलाह दी कि यदि लक्षणों में सुधार न हो या सांस लेने में तकलीफ बढ़ जाए तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें।
डॉ. सूर्यकान्त ने कहा कि दीपावली के दौरान घरों में साफ-सफाई, पुताई और रंगाई-पेंटिंग का चलन बहुत आम है। स्वच्छता अत्यंत आवश्यक है, परंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि सफाई के दौरान उठने वाली धूल, गंदगी और डस्ट माइट्स जैसे सूक्ष्म कण हमारे नाक और मुंह के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। अस्थमा, नाक की एलर्जी और अन्य श्वसन रोगियों के लिए ये धूलकण अत्यंत हानिकारक होते हैं। रंग, पेंट और वार्निश में उपस्थित रसायन भी श्वसन तंत्र को उत्तेजित कर सकते हैं, जिससे सांस के रोगियों के लक्षण बढ़ सकते हैं और उन्हें अधिक तकलीफ हो सकती है। इसलिए ऐसे रोगियों को घर की सफाई, पेंटिंग या सजावट के कार्यों से दूर रहना चाहिए। यदि घर में रंग या वार्निश किया जा रहा हो, तो जब तक उसकी गंध पूरी तरह समाप्त न हो जाए, तब तक रोगी को उस स्थान से दूर रहना चाहिए। दीपावली के उल्लास में अपनी सेहत की उपेक्षा न करें, क्योंकि थोड़ी सी सावधानी ही गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं से बचा सकती है।
डॉ. सूर्यकान्त ने दीपावली के अवसर पर हृदय एवं उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्तियों को विशेष सावधानी बरतने की अपील की है। उन्होंने कहा कि दिवाली के दौरान पटाखों की तेज आवाज और वायु में बढ़ता प्रदूषण ऐसे मरीजों के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है। उच्च रक्तचाप या हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को पटाखों की तेज आवाज और धुएं से यथासंभव दूरी बनाए रखनी चाहिए। अत्यधिक शोर और प्रदूषण से रक्तचाप अचानक बढ़ सकता है, जिससे बेचैनी, घबराहट, सिरदर्द, चक्कर या दिल की धड़कन तेज होने जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में तुरंत आराम करें और डॉक्टर से संपर्क करने में विलंब न करें। उन्होंने यह भी कहा कि जिन व्यक्तियों की हाल ही में एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी हुई है, उन्हें दीपावली पर पटाखों और धुएं से पूरी तरह बचना चाहिए। इन परिस्थितियों में शोर और प्रदूषण दोनों ही हृदय पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं, जिससे गंभीर जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
डॉ. सूर्यकान्त ने दीपावली के दौरान आंखों और त्वचा की सुरक्षा पर भी विशेष बल दिया। उन्होंने बताया कि यदि कोई पटाखा आंख में लग जाए तो आंख को रगड़ें नहीं, बल्कि तुरंत साफ पानी से धोकर डॉक्टर से संपर्क करें। आतिशबाजी की रोशनी में सीधे न देखें और जहां तक संभव हो प्रोटेक्टिव ग्लासेज का प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि सिंथेटिक कपड़ों की बजाय सूती और मोटे कपड़े पहनना अधिक सुरक्षित है। बच्चों को पटाखों से दूर रखें और किसी भी परिस्थिति में पटाखे जेब में न रखें। यदि त्वचा जल जाए तो केवल ठंडे पानी से धोएं, लेकिन उस पर मक्खन, तेल या पाउडर जैसे घरेलू पदार्थ न लगाएं।
नेशनल कोर समिति, डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर एंड क्लाइमेट एक्शन के सदस्य डॉ. सूर्यकान्त ने सभी नागरिकों से अपील की कि दीपावली को दीपों का पर्व ही रहने दें, “पटाखावली” न बनाएं। उन्होंने कहा कि आतिशबाजी यदि करनी भी हो तो खुले स्थान पर, ज्वलनशील वस्तुओं से दूर और सावधानीपूर्वक करें। पास में पानी या बालू की बाल्टी अवश्य रखें ताकि आकस्मिक स्थिति में तुरंत उपयोग किया जा सके।
उन्होंने पर्यावरण की दृष्टि से कम हानिकारक विकल्पों जैसे इलेक्ट्रॉनिक आतिशबाजी या कम्प्रेस्ड एयर तकनीक से बनी आतिशबाजी का प्रयोग करने की सलाह दी, जो शोर और प्रदूषण दोनों को कम करती हैं। साथ ही, चीन निर्मित पटाखों से बचने की भी चेतावनी दी क्योंकि वे अधिक विषैले और नुकसानदेह होते हैं। दीपावली के अवसर पर प्राथमिक उपचार हेतु बर्फ और पानी पास रखें, और किसी भी दवा का सेवन चिकित्सक की सलाह से ही करें।
अंत में डा. सूर्यकान्त ने कहा कि – “दीपावली का असली संदेश है – अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी खुशी किसी दूसरे के स्वास्थ्य या पर्यावरण के लिए खतरा न बने। दीप जलाएं, प्रदूषण नहीं।”