भूलने की समस्या को हल्के में न लें : डॉ. देवाशीष



  • अल्जाइमर जागरूकता सप्ताह की शुरुआत
  • मानसिक स्वास्थ्य शिविर आयोजित

लखनऊ - जनपद में सोमवार(19सितम्बर) से अल्जाइमर जागरूकता सप्ताह शुरू हुआ जो 25 सितम्बर तक चलेगा | इसी के तहत  बलरामपुर जिला चिकित्सालय के मानसिक स्वास्थ्य विभाग में रविवार को मानसिक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया |

इस मौके पर मानसिक रोग विभाग के  अध्यक्ष डा. देवाशीष शुक्ला ने कहा कि  यदि घर लौटते समय रास्ता भूल रहे हैं , बात करने में परेशानी हो रही है या बात का विषय भूल रहे हैं, याददाश्त कम हो रही है  या व्यवहार में बदलाव हो रहा है, नहाने, खाने और पैसे गिनने में परेशानी हो रही है, निर्णय लेने में दिक्कत आ रही है, बेहद निष्क्रिय रहते हैं , टीवी के सामने घंटों बैठे रहते हैं , बहुत अधिक सोने वाले या सामान्य गतिविधियों को पूरा करने में व्यक्ति अनिच्छुक है तो सचेत हो जाएं । यह अल्जाइमर के संकेत हो सकते हैं | अल्ज़ाइमर डिमेन्शिया का एक आम प्रकार है जो कि विशेष रूप से वृद्धों को प्रभावित करता है |

अल्जाइमर बीमारी का मरीज साधारण शब्द या असामान्य समानार्थक शब्द भूलने लगता है और उसकी बोली या लिखावट अस्पष्ट होती जाती है। अन्य बौद्धिक गतिविधियाँ भी कम होने लगती हैं, जिससे प्रतिदिन के जीवन पर असर पड़ता है।

यदि आप खुद में या अपने किसी परिजन में इनमें से कोई भी लक्षण देखें तो तत्काल  चिकित्सक से संपर्क करें। इसके  लक्षणों की समय रहते पहचान और उनका इलाज, सहयोग तथा समर्थन बहुत महत्वपूर्ण है।
डा. देवाशीष ने कहा कि रक्तचाप, मधुमेह, आधुनिक जीवनशैली और सिर में कई बार चोट लग जाने से इस बीमारी के होने की आशंका बढ़ जाती है। अमूमन 60 वर्ष की उम्र के आस-पास होने वाली इस बीमारी का फिलहाल कोई स्थायी इलाज नहीं है। हालाँकि बीमारी के शुरूआती दौर में नियमित जाँच और इलाज से इस पर काबू पाया जा सकता है।

मस्तिष्क के स्नायुओं के क्षरण से रोगियों की बौद्धिक क्षमता और व्यावहारिक लक्षणों पर भी असर पड़ता है। विभागाध्यक्ष ने बताया कि हम जैसे-जैसे बूढ़े होते जाते हैं, हमारी सोचने और याद करने की क्षमता भी कमजोर होती जाती है।  इसका गंभीर होना और हमारे दिमाग के काम करने की क्षमता में गंभीर बदलाव उम्र बढ़ने का सामान्य लक्षण नहीं है। यह इस बात का संकेत है कि हमारे दिमाग की कोशिकाएं निष्क्रिय हो  रही हैं।

इस अवस्था में दिमाग की कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, जिसके कारण याददाश्त, सोचने की शक्ति और अन्य व्यवहार बदलने लगते हैं। इसका असर सामाजिक जीवन पर पड़ता है। समय बीतने के साथ यह बीमारी बढ़ती है और गंभीर हो जाती है। यदि शुरुआत में ही इसके लक्षणों को पहचान लिया जाए तो दवाओं के द्वारा इसे बढ़ने से रोका जा सकता है, नहीं तो यह बीमारी गंभीर रूप ले सकती है और लाइलाज हो जाती है |
डा. देवाशीष ने बताया कि अल्जाइमर जागरूकता सप्ताह के दौरान स्कूलों और वृद्धाश्रम में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे | मानसिक स्वास्थ्य शिविर में 50 से अधिक लोगों ने प्रतिभाग किया |