लखनऊ, 12 अक्टूबर 2019- चिंता, तनाव व् अवसाद, जैसे मानसिक विकार अब आम से लगने वाले शब्द लगने लगे हैं| इनको हमने कभी गंभीरता से लिया ही नहीं बल्कि आंकडे दिखाते हैं कि उत्तर प्रदेश में मानसिक स्वास्थ्य का बड़ा बोझ हैं | हम शरीर के किसी अंग में होने वाले रोगों को तो वरीयता देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि मानसिक रोग भी भयावह रूप ले सकता है| यही कारण है मानसिक स्वास्थ्य को लोग नज़रंदाज़ करते है जबकि एक बार मानसिक स्वास्थ्य समस्या होने पर व्यक्ति लम्बी अवधि तक इसकी जद में रह सकता हैं | इसलिए मानसिक स्वास्थ्य की स्वीकार्यता होनी बहुत ज़रूरी हैं क्योंकि हम इसे रोग मानते ही नहीं हैं |
उत्तर प्रदेश में मानसिक स्वास्थ्य की स्तिथि को नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-2016 के आंकड़े बखूबी दर्शाते है | बारह राज्यों में किये गए इस सर्वे में उत्तर प्रदेश भी इसका हिस्सा रहा हैं | इस सर्वे में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई चौकाने वाले आंकड़े सामने आये | सर्वे के अनुसार उत्तर प्रदेश में हर 16 व्यक्तियों में से एक व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार हैं या यू कहे हर चार से पांच घर में एक मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति मिल जायेगा | वही अगर पदार्थों के इस्तेमाल से होने वाले विकारों की बात करे तो हर दो घरों में एक व्यक्ति इससे ग्रसित हैं | अगर 18 वर्ष की उम्र से ऊपर के लोगों में तो 15 मिलियन लोग मानसिक रोग से ग्रसित हैं | यदि इसमें तंबाखू इस्तेमाल से होने वाले विकारों को भी जोड़ दिया जाये तो यह आंकड़ा 21 मिलियन पहुँच जाता हैं |
सर्वे में यह भी पाया गया की निम्न आय वर्ग में आने वाले दस में से एक व्यक्ति मानसिक स्वास्थ्य समस्या से गुज़र रहा हैं | वही उच्च आय वर्ग में बीस लोगों में एक व्यक्ति में यह समस्या पाई गयी | निम्न आय वर्ग में ज्यादा संख्या का कारण आजीविका चलाने का भार और स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच में कमी पायी गयी | वही गाँव की अपेक्षा शहर में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं तीन गुना ज्यादा पाई गयी | इसका मुख्य कारण शहर की तेज़ रफ़्तार वाली जिंदगी, आर्थिक अस्थिरता, रहन-सहन के तरीके हैं | वही 40 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं में भी सामान्य रूप से सबसे ज्यादा मानसिक स्वास्थ्य विकारों का खतरा पाया गया जैसे डिप्रेशन व एंग्जायटी | उसका कारण शरीर में होने वाले बदलाव विशेष तौर पर जब मासिक धर्म (मेनोपॉज) बंद होने के समय | लगभग 85 प्रतिशत मानसिक रोग से ग्रसित लोग किसी तरह का इलाज़ नहीं ले रहे हैं | और 70 से 80 प्रतिशत मानसिक रोग से ग्रसित लोग पारंपरिक तरीके से इलाज़ करवा है | इसका कारण जानकारी का अभाव, लोगों के सामने बात आने का डर, पैसे की तंगी व कुशल डॉक्टरों की कमी हैं |
मानसिक स्वास्थ्य के लिए सरकार ने उठाये कारगर कदम –
राज्य स्तरीय मानसिक स्वास्थ्य अधिकारी डा. सुनील पांडे बताते है कि उत्तर प्रदेश में मानसिक रोगियों को सही उपचार मिले, इसके लिए 2015 में 12 जिलों में जिला मानसिक स्वास्थ्य केंद्र की शुरुआत की गयी अभी 45 जिलों में कार्यक्रम चल रहा हैं और बाकी जिलों में प्रशिक्षित डॉक्टरों के माध्यम से ओपीडी चालू हैं | अगले महीने से इन जिलों में भी भर्तियाँ पूरी हो जाएँगी | ज्यादातर परिवार जानकारी के अभाव में मानसिक रोग होने पर झाड़-फूक और बाबाओं का सहारा लेते हैं | इसके लिए 2017 से दुआ से दवा तक कार्यक्रम 45 जिलों में चलाया जा रहा है ताकि रोगी सही जगह इलाज़ पा सके | मनकक्ष की शुरुआत रोगियों की बात सुनने के लिए की गयी जिसे 55 जिलों में शुरू किया गया हैं | पिछले साल कुछ जनपदों में कक्षा के मॉनिटर के समान कक्षा में विद्यार्थियों के मध्य मन दूत व मन परी को बनाया गया था जो बच्चों के मानसिक व्यवहार पर उनसे बात करते थे । इस कार्यक्रम को सफलता मिली है और अब इसे पूरे राज्य में लागू करने की बात चल रही है । पिछले हफ्ते लखनऊ जिले के सरकारी व प्राइवेट स्कूलों के नोडल शिक्षकों को एक दिवसीय उन्मुखीकरण कार्यशाला में प्रशिक्षित किया गया ताकि वे अपने स्कूलों में मानसिक विकारों से ग्रस्त बच्चों की पहचान कर सकें |
मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्तियों के हितों की बात करता यह अधिनियम -
मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्ति के हितों को ध्यान में रखते हुए ही मानसिक स्वास्थ्य देख-रेख अधिनियम 2017 लागू किया गया | इस अधिनियम का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य और बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना हैं और मानसिक बीमारी से जुड़ी भ्रांतियों को कम करना। यह अधिनियम प्रत्येक व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को पाने का अधिकार देता है । ऐसी सेवाएं प्रदान करेगा जो अच्छी गुणवत्ता, सुविधाजनक, सस्ती और सुलभ हो । यह अधिनियम ऐसे लोगों को अमानवीय उपचार से बचाने, मुफ्त कानूनी सेवाए दिलवाने का अधिकार देता हैं व मानसिक बीमारी वाले प्रत्येक व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है |