- एहतियात बरतने से नवजात रहता है सुरक्षित
- दवा सेवन में अनियिमितता माँ व शिशु को डाल सकती है संकट में
लखनऊ - विकासनगर की रहने वाली पहली बार मां बनने जा रही सीमा (परिवर्तित नाम) को जब गर्भावस्था के सातवें महीने में फेफड़ों के टीबी होने के बारे में पता चला तो पहले तो वह घबराई लेकिन डाक्टर ने उसे आश्वस्त किया कि उसे सुरक्षित प्रसव तो होगा ही और वह अपने बच्चे को स्तनपान भी करा सकेगी बशर्ते वह टीबी की दवाओं का नियमित सेवन करे और कुछ हिदायतों का पालन करे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की गाइडलाइन में स्पष्ट किया गया है कि टीबी से संक्रमित या संक्रमण का संदेह होने पर भी शिशु को अपना दूध पिलाने के लिए मां को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यदि मां बहुत ज्यादा बीमार नहीं है तो बच्चे को उससे अलग नहीं किया जाना चाहिए। शुरुआत में सीमा को खांसी और बुखार आया, फिर उसका वजन भी घटने लगा। उसने यह सोचकर इसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया कि गर्भावस्था के दौरान ऐसी परेशानियां आती होंगी लेकिन हालत जब बिगड़ने लगी तो वह जिला महिला अस्पताल गई। डाक्टर ने उसके बलगम की जांच करायी तो पता चला कि उसे फेफड़े की टीबी है।
खुद से अधिक उसे अपने होने वाले शिशु की चिंता सताती रही कि क्षय रोग की नियमित दवाओं के सेवन से यदि उसका प्रसव सकुशल हो भी गया तो वह नवजात को स्तनपान कैसे करायेगी। उसे हुई टीबी का दुष्प्रभाव कहीं उसके नवजात को भी न हो जाये। दूसरे दिन सीमा ने जब डाक्टर से सम्पर्क किया तो उसकी सारी चिंता दूर हो गयी। सीमा ने डॉक्टर की हर सलाह मानी। इसका नतीजा रहा कि आज वह पांच माह के स्वस्थ शिशु की मां है और खुद भी स्वस्थ व प्रसन्न है।
कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता के चलते टीबी संक्रमण का खतरा अधिक : कोलेबरेटिव फ्रेमवर्क फॉर मैनेजमेंट ऑफ़ ट्यूबरक्लोसिस इन प्रेगनेंट वीमेन के मुताबिक दो स्वतंत्र अनुमान बताते हैं कि भारत में एक बड़ी संख्या में गर्भवती महिलाएँ टीबी से प्रभावित हैं। कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता की वजह से गर्भवती और धात्री महिलाओं में टीबी होने की संभावना ज़्यादा होती है।
एसजीपीजीआई की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पियाली भट्टाचार्य का कहना है- गर्भावस्था के दौरान टीबी होने पर आम तौर पर महिलाएं अपने शिशु को लेकर चिंतित रहती हैं। उन्हें भ्रम रहता है कि प्रसव के बाद यदि उन्होंने अपने शिशु को स्तनपान कराया तो उसे भी टीबी हो सकती है। हकीकत यह है कि यदि मां को टीबी है तो भी वह अपने शिशु को स्तनपान करा सकती है बशर्ते वह स्तनपान कराने से तीन सप्ताह पहले से टीबी की दवा ले रही हो क्योंकि तीन सप्ताह लगातार दवा के सेवन के बाद टीबी के बैक्टीरिया संक्रामक नहीं रह जाते। यह जानना भी ज़रूरी है कि टीबी बाल और नाखून को छोड़कर शरीर के किसी भी अंग में हो सकती है लेकिन केवल फेफड़े की टीबी ही संक्रामक होती है।
डा. पियाली बताती हैं कि शिशु को स्तनपान कराने से पहले साफ सफाई पर ध्यान देने के साथ ही मास्क भी पहनना जरूरी होता है। शिशु को छूने से पहले और बाद में अपना हाथ धोना चाहिए और नियमित रूप से आसपास की सतहों को साफ और संक्रमणमुक्त करना चाहिए।
गर्भवती को टीबी के खतरे से बचाना सरकार की प्राथमिकता : डॉ. पियाली का कहना है कि आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान टीबी के लक्षण स्पष्ट नहीं दिखते जिसकी वजह से इसकी पहचान करने में चुनौतियाँ आती हैं। गर्भावस्था के दौरान टीबी माँ के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु, नवजात या बच्चे पर कम या लम्बे समय के लिए प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। इससे प्रजनन स्वास्थ्य में गिरावट आ सकती है, माँ बनने में दिक्कत हो सकती है, गर्भस्थ शिशु की सेहत पर असर पड़ सकता है और समय से पहले जन्म या शिशु को टीबी संक्रमण भी हो सकता है। स्थिति गंभीर हो तो माँ या बच्चे की जान भी जा सकती है। इसे रोकने के लिए क्षय उन्मूलन की राष्ट्रीय रणनीति के तहत विशेष प्रयास किये जा रहे हैं। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम और मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रम द्वारा संयुक्त रूप से टीबी ग्रसित गर्भवतियों के प्रबंधन के लिए गाइडलाइन जारी की गई है जिसके तहत मौजूदा मातृ स्वास्थ्य सेवाओं में टीबी स्क्रीनिंग को भी जोड़ा गया है। जुलाई 2022 से ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस (वीएचएनडी) और प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस के अवसर पर लक्षण वाली गर्भवती महिलाओं की अन्य प्रसवपूर्व जांचों के साथ टीबी की जाँच भी की जा रही है।