इंडिगो संकट पर सुप्रीम कोर्ट का तत्काल दखल देने से इनकार, सीजेआई बोले- सरकार को ही मामला संभालने दें



नई दिल्ली । इंडिगो एयरलाइंस के ऑपरेशनल संकट से जूझ रहे लाखों यात्रियों को सुप्रीम कोर्ट से भी फिलहाल कोई फौरी राहत नहीं मिली है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करने से साफ इनकार कर दिया है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया  सूर्यकांत के समक्ष जब इस याचिका को तुरंत सूचीबद्ध करने की मांग की गई, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि अदालत जानती है कि लाखों लोग इस समस्या का सामना कर रहे हैं और हालात खराब हैं, लेकिन सरकार इस मामले को देख रही है, इसलिए उन्हें ही इसे संभालने दिया जाए। याचिकाकर्ता वकील ने दलील दी थी कि करीब 2500 उड़ानें विलंबित हैं और देश के 95 हवाई अड्डे इस अव्यवस्था से प्रभावित हैं, जो सीधे तौर पर नागरिकों के अनुच्छेद 21 के तहत अधिकारों का उल्लंघन है।

बीते 7 दिनों से इंडिगो की उड़ानों का रद्दीकरण और लेटलतीफी बदस्तूर जारी है। सोमवार को भी हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ गए, जब कंपनी ने दिल्ली और बेंगलुरु हवाई अड्डों से 250 से अधिक उड़ानें रद्द कर दीं। आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली एयरपोर्ट से कुल 134 उड़ानें (75 जाने वाली और 59 आने वाली) और बेंगलुरु से 127 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं। हालात की गंभीरता को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने 6 दिसंबर को सीजेआई सूर्यकांत के घर जाकर भी तत्काल सुनवाई की गुहार लगाई थी, जिसमें यात्रियों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था और मुआवजे की मांग की गई थी, लेकिन कोर्ट ने फिलहाल प्रशासन के काम में दखल न देने का फैसला किया है।

इस बीच, विमानन नियामक डीजीसीए (DGCA) ने इंडिगो प्रबंधन पर शिकंजा कस दिया है। डीजीसीए ने पायलटों की ड्यूटी से जुड़े नए स्नष्ठञ्जरु नियमों के कुप्रबंधन को लेकर कंपनी के सीईओ पीटर एल्बर्स और जवाबदेही प्रबंधक इस्द्रो पोर्क्वेरास को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। नियामक ने दोनों अधिकारियों को आज शाम 6 बजे तक जवाब देने का अल्टीमेटम दिया है। डीजीसीए ने साफ कर दिया है कि अगर तय समय सीमा के भीतर संतोषजनक जवाब नहीं मिला, तो कंपनी के खिलाफ आवश्यक और सख्त कार्रवाई की जाएगी। फिलहाल देशभर के हवाई अड्डों पर यात्री अपनी उड़ानों के इंतजार में फंसे हुए हैं और एयरलाइन प्रबंधन पायलटों की कमी और रोस्टर की समस्या से जूझ रहा है।