क्रॉनिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सी.ओ.पी.डी.) फेफड़े की एक प्रमुख बीमारी है, जिसे आम भाषा में क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस भी कहते हैं। प्रतिवर्ष नवम्बर के तीसरे बुधवार को विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष के सी.ओ.पी.डी. दिवस की थीम है- “Short of Breath, Think COPD.”, “सांस लेने में दिक्कत हो, तो COPD के बारे में सोचें।”। विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस का आयोजन ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (गोल्ड) द्वारा दुनिया भर में सांस रोग विशेषज्ञों और सी.ओ.पी.डी. रोगियों के सहयोग से किया जाता है। इसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना, विचार साझा करना और दुनिया भर में सी.ओ.पी.डी. के बढ़ते भार को कम करने के तरीकों पर चर्चा करना है। विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस का आयोजन प्रत्येक देश में चिकित्सकों, शिक्षकों और जन-भागीदारी द्वारा किया जाता है। पहला विश्व सी.ओ.पी.डी. दिवस सन् 2002 में आयोजित किया गया था। हर साल 50 से अधिक देशों में इसका आयोजन किया जाता है, जिससे यह दिन दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण सीओपीडी जागरूकता और शिक्षा कार्यक्रमों में से एक बन जाता है।
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी) 21वीं सदी की सबसे तेजी से बढ़ती हुई श्वसन बीमारियों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार, सीओपीडी दुनिया में मृत्यु के प्रमुख कारणों में तीसरे स्थान पर है। जबकि भारत में मौत का यह दूसरा कारण है। सी.ओ.पी.डी. के कारण होने वाली मौतो में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है और तेजी से आगे निकल रहा है। सन् 2019 में विश्व में 32 लाख लोगों की मृत्यु इस बीमारी की वजह से हो गयी थी वही भारत में लगभग 5 लाख लोगों की मृत्यु हुयी थी। 2025 के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो सीओपीडी न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र पर एक बड़ी चुनौती बनकर उभर रही है, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय उत्पादकता पर व्यापक प्रभाव डाल रही है।
धूम्रपान सी.ओ.पी.डी. का प्रमुख जोखिम कारक है, किन्तु आज विश्व में बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण, इसके मुख्य कारणों में से एक है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा भोजन बनाने में उपयोग होने वाले उपले, लकड़ी, अंगीठी, मिट्टी के चूल्हे के द्वारा निकलने वाले धुएं से भी यह बीमारी हो सकती है। सर्दी का मौसम शुरू को चुका है। सुबह सुबह फॉग एवं स्मॉग भी जल्द ही आसमान पर छाने लगेगा। इस समय वायु प्रदूषण और बढ़ जाता है। इसके साथ ही सांस की बीमारियां, निमोनिया एवं क्रॉनिक ब्रोन्काइटिस का प्रकोप बढ़ने लगा है। जिसकी वजह से बीमारी की तीव्रता बढ़ जाती है और सी.ओ.पी.डी. के मरीजों को ज्यादा तकलीफ होती है। फलस्वरूप मरीजों में सांस के दौरे, मरीजों का अस्पताल में बड़ी संख्या में भर्ती होना, और अधिक मृत्यु दर देखी जाती है।
लक्षण - सी.ओ.पी.डी. की बीमारी में प्रारम्भ में सुबह के वक्त खांसी आती है, धीरे-धीरे यह खांसी बढ़ने लगती है और इसके साथ बलगम भी निकलने लगता है। सर्दी के मौसम में खासतौर पर यह तकलीफ बढ़ जाती है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही रोगी की सांस फूलने लगती है और धीरे-धीरे रोगी सामान्य कार्य जैसे- नहाना, धोना, चलना-फिरना, बाथरूम जाना आदि में भी अपने को असमर्थ पाता है। गले की मांसपेशिया उभर आती है और शरीर का वजन घट जाता है। पीड़ित व्यक्ति को लेटने में परेशानी होती है। इस बीमारी के साथ ह्नदय रोग होने का भी खतरा बढ़ जाता है। बीमारी की तीव्रता बढ़ने पर इस बीमारी में शरीर के अन्य अंगों पर भी बुरा असर पड़ता है। हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है, हृदय रोग, किड़नी रोग, लिवर रोग, मानसिक रोग, अनिद्रा, अवसाद व कैंसर आदि का खतरा बढ़ जाता है।
परीक्षण - सामान्यतः प्रारंभिक अवस्था में एक्स-रे में फेफड़े में कोई खराबी नजर नहीं आती, लेकिन बाद में फेफड़े का आकार बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप दबाव बढ़ने से दिल लम्बा और पतले ट्यूब की तरह (ट्यूबलर हार्ट) हो जाता है। इस रोग का पता लगाने का तरीका स्पाइरोमेटरी (कम्प्यूटर के जरिये फेफड़े की कार्यक्षमता की जांच) या पी.एफ.टी. है। कुछ रोगियों में सी.टी. स्कैन की भी आवश्यकता पड़ती है।
उपचार - सी.ओ.पी.डी. के उपचार में इन्हेलर चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ है जिसे चिकित्सक की सलाह से नियमानुसार लिया जाना चाहिए। सर्दियों में दिक्कत बढ़ जाती है, इसलिये चिकित्सक की सलाह से दवा की डोज में परिवर्तन किया जा सकता हैं। खांसी व अन्य लक्षणों के होने पर चिकित्सक के परामर्श से संबधित दवाइयां ली जा सकती है। खांसी के साथ गाढ़ा या पीला बलगम आने पर चिकित्सक की सलाह से एन्टीबायोटिक्स ली जा सकती है। गम्भीर रोगियों में नेबुलाइजर, ऑक्सीजन व नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एन.आई.वी.) का उपयोग भी किया जाता है। आधुनिक चिकित्सा के रूप में अब लंग स्टेंट, वाल्व, लंग वॉल्यूम रिडक्शन सर्जरी (एल.वी.आर.एस) तथा फेफड़े का ट्रांसप्लांट जैसे उपचार भी किये जा रहे हैं।
बचाव - सी.ओ.पी.डी. का सर्वश्रेष्ठ बचाव धूम्रपान को बन्द करना है। जो रोगी प्रारम्भ में ही धूम्रपान छोड़ देते हैं उनको परेशानी कम होती है। इसके अतिरिक्त अगर रोगी धूल, धुआं या गर्दा के वातावरण में रहता है या कार्य करता है तो उसे शीघ्र ही अपना वातावरण बदल देना चाहिए या ऐसे काम छोड़ देने चाहिए। ग्रामीण महिलाओ को लकड़ी, कोयला या गोबर के कंडे (उपले) के स्थान पर गैस के चूल्हे पर खाना बनाना चहिए। इस सम्बन्ध में भारत सरकार की उज्जवला योजना, (गरीब परिवारों को मुफ्त एल.पी.जी. कनेक्शन दिया गया है) भी प्रभावी हो रही है। इसके अतिरिक्त सी.ओ.पी.डी. के रोगियों को प्रतिवर्ष इन्फ्लूएंजा वैक्सीन बचाव हेतु लगवाना चाहिए, जबकि न्यूमोकोकल वैक्सीन भी जीवन में एक बार लगवाना चाहिए। कोविड काल में मास्क लगाना अति आवश्यक माना गया है, यह हमें वायु प्रदूषण से भी बचाता है जिससे सी.ओ.पी.डी. का खतरा कम होता है।
क्या करें - धूम्रपान न करें व धूल, धुआँ व गर्दा से बचें। सर्दी से बचकर रहें। पूरा शरीर ढकने वाले कपड़े पहने। मास्क लगायें, सिर, गले और कान को खासतौर पर ढकें। सर्दी के कारण साबुन पानी से हाथ धोने की अच्छी आदत न छोड़े, यह कवायद आपको जुकाम, फ्लू तथा निमोनिया की बीमारी से बचाकर रखती है। गुनगुने पानी से नहाएं। सांस के रोगी न सिर्फ सर्दी से बचाव रखें वरन नियमित रूप से चिकित्सक के सम्पर्क में रहें व उनकी सलाह से अपने इन्हेलर की डोज भी दुरूस्त कर लें। कई बार इन्हेलरर्स की मात्रा बढ़ानी होती है तथा आमतौर पर ली जाने वाली नियमित खुराक से ज्यादा मात्रा में खुराक लेनी पड़ती है। धूप निकलने पर धूप अवश्य लें। शरीर की मालिश करने पर रक्त संचार ठीक होता है। सर्दी, जुकाम, खांसी, फ्लू व सांस के रोगियों को सुबह शाम भाप लेनी चाहिए। यह गले व सांस की नलियों (ब्रान्काई) के लिए फायदेमंद है। सांस रोगों से संबंधित वैक्सीन जैसे कि न्यूमोकोकल व इन्फ्लूएंजा वैक्सीन चिकित्सक की सलाह पर लगवाएं।