श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जयंती, अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान द्वारा परिचर्चा आयोजित



लखनऊ - अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान द्वारा भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी की 125वीं जयंती के अवसर पर एक परिचर्चा का आयोजन संस्थान परिसर में किया गया। इस कार्यक्रम में संस्थान के सदस्य भिक्षु शील रतन, तरुणेश बौद्ध, श्रीलंका से वेन डॉ जुलाम्पिटिये पुण्यासार महास्थविर, निदेशक संस्थान डॉ राकेश सिंह, डॉ धीरेंद्र सिंह, बौद्ध भिक्षु, बौद्ध एवं जैन संस्थान के कर्मचारीगण, छात्र-छात्राएं आदि उपस्थित रहे।

कार्यक्रम की शुरुआत डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा के समक्ष पुष्पांजलि एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ आरम्भ की गयी । संस्थान के सदस्य तरुणेश बौद्ध ने बताया कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। अपने देश एवं अखंडता बनाये रखने के लिए सतत संघर्ष किया तथा जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने के लिए जेल गए जहाँ उनका देहांत हो गया। वेन डॉ जुलाम्पिटिये पुण्यासार महास्थविर जी ने कहा कि सभी को डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आचरण का अनुकरण करना चाहिए तथा उनके विचार भारत को विश्व गुरु बनाने में सहायक होंगे।

निदेशक संस्थान डॉ राकेश सिंह ने बताया कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी केवल राजनेता ही नहीं, समाज के प्रति संवेदनशील एवं सेवाभावी नेता थे। उन्होंने कहा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारतीय जनसंघ के सूत्रधार थे तथा स्वतंत्रता आन्दोलन में भी सक्रिय रहे और उनका नारा था एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे, अखंड भारत के निर्माण के लिए उन्होंने आजीवन संघर्ष किया।

डॉ धीरेंद्र सिंह ने बताया कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने सिद्धांतों के प्रति कभी समझौता नहीं किया तथा भारत में हिन्दुओं की सुरक्षा, भारतीय संस्कृति, एकात्मकता और राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा दिया। अपने अध्यक्षीय भाषण में संस्थान के सदस्य भिक्षु शील रतन ने बताया कि डॉ साहब ने भारत के एकीकरण के लिए आजीवन संघर्ष किया, आज भी डॉ साहब के विचार पूर्णतः प्रासंगिक है। अंत में निदेशक संस्थान डॉ राकेश सिंह ने कार्यक्रम में आए हुए सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।